Wednesday, June 1, 2011

पानी : प्रबंधन के बिना सब पानी पानी


हिमालय से निकलने वाली नदियों की गोद में बसे अररिया जिले के लिए नदी व भूगर्भ जल का प्रबंधन एक मरीचिका है। दुनिया के सबसे बड़े जल भंडार वाले इस इलाके में बाढ़ और सुखाड़ दोनों की मार एक साथ लगती है। तेज बरसा हुई तो दो से तीन दिनों के अंदर भीषण बाढ़, वहीं बरसा नहीं हुई तो भारी सुखाड़।
जलप्रबंधन से सुधर सकते हैं हालात
इलाके की विडंबना यह है कि हर साल अरबों घनफुट पानी बेकार बह कर समुद्र में चला जाता है, लेकिन उसे सहेजने व संरक्षित करने की कोई कोशिश नहीं होती। पानी के इस बेलगाम प्रवाह से कई बिंदुओं पर क्षति पहुंचती है। इससे न केवल उपजाऊ मिट्टी का क्षरण होता है, बल्कि फसल की सिंचाई के लिए वक्त पर पानी नहीं मिलता।
इलाके में अब प्रवाही नदियां भी सूख रही हैं
जानकारों के मुताबिक अररिया जिले में तीन फ्लड प्लान हैं। इनमें से सबसे पूरब में परमान-कनकई-महानंदा फ्लड प्लान है। इस प्लान के अंदर बहने वाली नदियों का सोर्स हिमालय की चोटियों में है। नतीजतन ये बारहों महीने प्रवाही रहती हैं, लेकिन विगत वर्ष इस प्लान की एक प्रमुख नदी नूना सूख गई। बकरा, रतवा व कोल खखुवा जैसी नदियों के बेड में सिल्टिंग हो रही है, जिससे बाढ़ का खतरा हर रोज बढ़ रहा है और उपजाऊ खेत बरबाद हो रहे हैं।
वहीं, इससे पश्चिम में सेंट्रल पूर्णिया प्लान व उससे पश्चिम में कोसी फ्लड प्लान है। इन दोनों प्लान की डेढ़ दर्जन से अधिक नदियों सूख चुकी हैं। इनमें बुढ़कोसी, लछहा, गेरुआ, कमला, कमताहा, कारी कोसी, सीता, बूढ़ी, हिरण, बिनैनियां, नितिया, कजरा आदि नदियां शामिल हैं।
ग्रामीणों की मानें तो इलाके में गर्मियों के दौरान भूगर्भ जल का स्तर दस से बीस फुट नीचे चला जाता है। वर्ष 2010 में अररिया जिले के नरपतगंज, फारबिसगंज व भरगामा अंचलों के हजारों चापाकल सूख गए थे और उन्हें उखाड़ कर पाइप की लंबाई बढ़ानी पड़ी थी।
शुद्ध पेय जल एक सपना
मीठे पानी के भंडार पर तैर रहे अररिया जिले में शुद्ध पेयजल एक सपना है। जल में बैक्ट्रीरिया व हानिकारक रसायनों की भरमार है। इसे शुद्ध करने के प्रयास हुए हैं पर उपलब्धि सिफर ही रही है।
लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार जिले के तकरीबन सभी जल स्रोतों में आयरन का स्तर निर्धारित मानक से कहीं ज्यादा है। वहीं, नब्बे फीसदी चापाकलों में हानिकारक बैक्टीरिया पाए जाते हैं।
गांवों में शुद्ध पेयजल मुहैया कराने के लिए चलाई गई करोड़ों रुपयों की कोसी अमृत पेय जल योजना पूरी तरह फ्लॉप हो चुकी है। विगत कुछ वर्ष में राज्य सरकार द्वारा लौहमुक्त जल की उपलब्धता को ले भेजे गई आइआरपी सेट पीएचइडी परिसर में की शोभा बढ़ा रहे हैं। हालांकि पीएचइडी के कार्यपालक अभियंता लाल बाबू महतो का कहना है कि गांवों में शुद्ध जल मुहैया करवाने की दिश में काम चल रहा है।
जल प्रदूषण से विलुप्त हो रहे जलजीव
जिले में भूगर्भ का जल तो प्रदूषित है ही, कचरा निबटान की वजह से नदियों के रास्ते बहने वाला जल भी प्रदूषित हो रहा है। बिहार राज्य प्रदूषण बोर्ड द्वारा करवाई गई जांच में पता चला है कि जिले की प्रमुख नदी परमान के जल में आक्सीजन की मात्रा मानक स्तर से काफी कम है। वहीं, फासफोरस, पोटाश, नाइट्रोजन आदि मानक स्तर से कहीं ज्यादा हैं। वहीं, बारिश के दौरान धान के खेतों में कीटनाशक दवाओं के प्रयोग से भी बात बिगड़ रही है।
इस कारण एक दर्जन से अधिक मछलियों का वंश नाश हो चुका है। डालफिन, घड़ियाल व नकार जैसे कई जीव यहां की नदियों से विलुप्त हो चुके हैं।

0 comments:

Post a Comment