जोकीहाट,(अररिया) : आंगनबाड़ी केन्द्रों की ओर बच्चों को आकर्षित करने के लिए सरकार आईसीडीएस की ओर से प्रत्येक आंगनबाड़ी केन्द्र को पोशाक राशि के लिए दस-दस हजार रुपये मुहैया कराये गये। राशि वितरण के महीनों बीतने के बावजूद आंगनबाड़ी केन्द्रों में करीब अस्सी फीसदी से अधिक बच्चे पोशाक से वंचित हैं। हालत यह है कि अधिकांश बच्चे पुराने फटे कपड़ों में केन्द्र पहुंचते हैं। कुछ तो यूं ही नंगे बदन केन्द्र पहुंच जाते हैं। उनके हाथों में सिर्फ थाली या फिर कटोरी देखने को मिलती हैं। हालांकि सीडीपीओ रंजना सिंहा के स्तर से बच्चों के अभिभावकों एवं आंगनबाड़ी सेविकाओं को कड़ी हिदायत देकर पोशाक बनवाने का निर्देश दिया गया था। कई सेविकाओं ने बताया कि निर्देशानुसार हमने पोशाक राशि वितरण कर दिया अब अभिभावक पोशाक राशि दूसरे मद में खर्च कर देते हैं तो हम क्या करें। प्रखंड के गिरदा, चौकता, डुबा, सिसौना, महलगांव, चिरह, चैनपुर मसुरिया,कुर्सेल आदि पंचायतों के केन्द्रों की स्थिति पोशाक मामले में और भी खराब है। ग्रामीणों का कहना है कि अधिकांश बच्चों के माता-पिता गरीबी और अशिक्षा के कारण पोशाक की राशि घर में खर्च कर देते हैं जिससे मासूम बच्चों को पोशाक नहीं मिल पाता है। ग्रामीणों का यह भी कहना है कि पोशाक बनवाने के प्रति सेविकाएं भी उदासीन रहती है सेविका के स्तर से और प्रयास की आवश्यकता है। सीडीपीओ रंजना सिंहा ने बताया कि सेविकाओं के स्तर से और पहल की आवश्यकता है। श्रीमती सिंहा ने कहा केन्द्रों की जांच के दौरान भी अभिभावकों को पोशाक खरीदकर बच्चों को देने का निर्देश दिया जाता है। उन्होने कहा कुछ बच्चे तो जिद कर पोशाक अपने घरवालों से खरीदवा लेते हैं। लेकिन करीब अस्सी फीसदी बच्चे पोशाक से वंचित हैं। ग्रामीण स्तर पर सरकार गरीब व बीपीएलधारी परिवार के बच्चों के सामाजिक, शैक्षिक स्थिति में सुधार लाने के लिए पानी की तरह पैसे खर्च कर रही है लेकिन माता-पिता ही बच्चों के हकमारी में लगे रहेंगे तो हालत कैसे सुधरेगी?
Monday, May 14, 2012
आंगनबाड़ी बच्चों के नहीं बनी पोशाक
जोकीहाट,(अररिया) : आंगनबाड़ी केन्द्रों की ओर बच्चों को आकर्षित करने के लिए सरकार आईसीडीएस की ओर से प्रत्येक आंगनबाड़ी केन्द्र को पोशाक राशि के लिए दस-दस हजार रुपये मुहैया कराये गये। राशि वितरण के महीनों बीतने के बावजूद आंगनबाड़ी केन्द्रों में करीब अस्सी फीसदी से अधिक बच्चे पोशाक से वंचित हैं। हालत यह है कि अधिकांश बच्चे पुराने फटे कपड़ों में केन्द्र पहुंचते हैं। कुछ तो यूं ही नंगे बदन केन्द्र पहुंच जाते हैं। उनके हाथों में सिर्फ थाली या फिर कटोरी देखने को मिलती हैं। हालांकि सीडीपीओ रंजना सिंहा के स्तर से बच्चों के अभिभावकों एवं आंगनबाड़ी सेविकाओं को कड़ी हिदायत देकर पोशाक बनवाने का निर्देश दिया गया था। कई सेविकाओं ने बताया कि निर्देशानुसार हमने पोशाक राशि वितरण कर दिया अब अभिभावक पोशाक राशि दूसरे मद में खर्च कर देते हैं तो हम क्या करें। प्रखंड के गिरदा, चौकता, डुबा, सिसौना, महलगांव, चिरह, चैनपुर मसुरिया,कुर्सेल आदि पंचायतों के केन्द्रों की स्थिति पोशाक मामले में और भी खराब है। ग्रामीणों का कहना है कि अधिकांश बच्चों के माता-पिता गरीबी और अशिक्षा के कारण पोशाक की राशि घर में खर्च कर देते हैं जिससे मासूम बच्चों को पोशाक नहीं मिल पाता है। ग्रामीणों का यह भी कहना है कि पोशाक बनवाने के प्रति सेविकाएं भी उदासीन रहती है सेविका के स्तर से और प्रयास की आवश्यकता है। सीडीपीओ रंजना सिंहा ने बताया कि सेविकाओं के स्तर से और पहल की आवश्यकता है। श्रीमती सिंहा ने कहा केन्द्रों की जांच के दौरान भी अभिभावकों को पोशाक खरीदकर बच्चों को देने का निर्देश दिया जाता है। उन्होने कहा कुछ बच्चे तो जिद कर पोशाक अपने घरवालों से खरीदवा लेते हैं। लेकिन करीब अस्सी फीसदी बच्चे पोशाक से वंचित हैं। ग्रामीण स्तर पर सरकार गरीब व बीपीएलधारी परिवार के बच्चों के सामाजिक, शैक्षिक स्थिति में सुधार लाने के लिए पानी की तरह पैसे खर्च कर रही है लेकिन माता-पिता ही बच्चों के हकमारी में लगे रहेंगे तो हालत कैसे सुधरेगी?
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