Wednesday, July 4, 2012

सुगनी के दुखों की कोई सीमा नहीं


फारबिसगंज (अररिया) : पति के रहते विधवा की जिंदगी जीने का अभिशाप और अब इकलौते जवान बेटे का भी सहारा छिन गया। यह फारबिसगंज के हरिपुर गांव की सुगनी देवी के दुखों का क्लाईमेक्स है।
सुगनी के बुढ़ापे की लाठी व इकलौते पुत्र संतोष मेहता की मौत रहस्यमय है। पूरी दास्तां दर्द से बावस्ता है।
संतोष का शव चार दिनों तक पड़ोस स्थित साढू ताराचन्द मेहता के घर में सड़ता रहा और इधर सुगनी अपने कलेजे के टुकड़े को खोजती रही। पत्‍‌नी, साढू सभी ने खोजबीन की लेकिन संतोष का पता तब चला जब उसके शरीर से दुर्गध आने लगी। सुगनी देवी की तो जैसे बची-खुची जिंदगी हीं तबाह हो गयी। इसी वर्ष अप्रैल माह में ही सुहागन बनी संतोष की नयी नवेली दुल्हन रूपा पर तो जैसे पहाड़ ही टूट पड़ा।
पिछले करीब 25 वर्षो से सुगनी अपने मायके हरिपुर में बेटे संतोष के साथ रह रही थी।
पति मदन मेहता ने सुगनी को शादी के कुछ समय बाद हीं छोड़ दिया था और दूसरी शादी रचाकर रानीगंज के विस्टोरिया में रह रहे हैं। सुगनी पर पति का सहारा छूटने के बाद बेटे के लालन पालन की जिम्मेदारी आ गयी। मजदूरी कर उसने बेटे को पाला और शादीब्याह करवाया। लेकिन संतोष किसी बीमारी से ग्रसित था। जिस कारण वह कोई काम भी ठीक से नही कर पा रहा था। करीब 26 वर्ष की उम्र में जब बेटे की मौत हो गयी तो पिता उसे देखने तक नही आये। पति के जिंदा रहते विधवा की जिंदगी जी रही उसकी मां के लिये इससे बड़ी त्रासदी नही हो सकती कि मां के सामने जवान बेटे की अर्थी उठ गयी। सुगनी की आंखों से अब आंसू भी सूख चुके हैं।
इधर, फिलहाल पुलिस संतोष की मौत को सामान्य मान रही है। लेकिन मां सुगनी देवी और साढू ताराचंद को आशंका है कि बीमारी से तंग आकर उसे खुदकुशी कर ली।

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