Sunday, November 7, 2010

नशेड़ियों के हवाले रेलवे गुमटी,अधिकारियों ने साधी चुप्पी

अररिया। रेलवे गुमटी पर पिछले दिनों जिस तरह की लापरवाही उजागर हुई है उससे रेलवे के अधिकारियों पर भी सवाल उठने लगे हैं। कटिहार-जोगबनी रेल खंड के फारबिसगंज सुभाष चौक स्थित केजे 65 तथा केजे 63 पर नशे की हालत में पकड़े गए दोनों गेटमैन में से एक केजे 65 के गेटमेन सुरेन्द्र पांडेय को निलंबित कर जांच टीम गठित की गयी है। रेलवे अधिकारियों द्वारा अपनायी गयी दोहरी नीति रेलवे कर्मचारियों व लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। वहीं काफी समय से केजे 65 गुमटी के गेटमेन द्वारा शराब पीने से लेकर बेटे से रेलवे का कार्य करवाया जा रहा था, जिसकी जानकारी रेलवे के अधिकारियों को भी थी। इसकी पुष्टि रेलवे के एसईपीके अश्रि्वनी कुमार ने की है। गेटमेन ने तो यहां तक कहा कि अश्रि्वनी कुमार सहित अन्य वरीय अधिकारियों द्वारा उसकी बिगड़ती स्थिति को देखते हुए बेटे से सहयोग लेने और थोड़ी मात्रा में डयूटी के समय शराब पीने की मौखिक अनुमति दी गयी है। अश्रि्वनी कुमार ने फारबिसगंज एसडीओ के समक्ष कहा था कि गेटमेन के बेटे द्वारा रेलवे गुमटी पर काम करने की जानकारी उन्हें थी। तो क्या लापरवाही की जानकारी के बावजूद इस पर रोक नहीं लगाना सोची-समझी साजिश थी। सवाल उठता है कि रेलवे के अधिकारियों द्वारा जानकारी के बावजूद इसे रोकने के प्रयास क्यों नहीं किया गया? काफी समय से एक ऐसे युवक के द्वारा रेलवे फाटक लगाने से लेकर रेलवे के फोन को रिसीव किया जा रहा था, जिसे रेल कार्य का एबीसी तक नहीं आता। ऐसे में कभी कोई बड़ी रेल दुर्घटना हो जाती तो इसके लिए आखिर कौन जिम्मेवार होता? स्वाभाविक तौर पर ऐसे मामलों में छोटे कर्मचारी ही बलि का बकरा बनते हैं। गेटमेन के बेटे राजीव कुमार के द्वारा रेलवे गुमटी पर स्टेशनों से आने वाले फोन का रिसीव किए जाने के बावजूद स्टेशनों पर किसी ने यह सुधि नहीं ली कि आखिर कौन दूसरा व्यक्ति है जो फोन रिसीव कर रहा है। यहां तक कि सहायक स्टेशन मास्टर ने भी लापरवाही बरतते हुए संवेदनशील मामले से किनारा कर लिया। हैरत की बात है कि कटिहार से नियमित रूप से रेलवे के अधिकारी विभिन्न बिंदुओं की जांच इस रेलखंड पर करने के लिए दौरा करते हैं। कटिहार के अधिकारियों ने भी मामले पर विशेष ध्यान नहीं दिया। औपचारिकताओं तक ही रेल अधिकारियों का काम सिमट कर रह गया। यह स्थिति है भारतीय रेल के कटिहार मंडल की। हजारों रेल यात्रियों की जान के साथ लापरवाही पूर्वक खिलवाड़ किया जाता है। वरीय अधिकारी बच निकलते है और छोटे कर्मचारी की बलि चढ़ जाती है।

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