Sunday, November 7, 2010

मिलावट खोर हो रहे मालामाल और किसान बन रहे कंगाल

अररिया। यदि आप अपने खेतों में लहलहाते पौधों के साथ बलखाते दाना देखना चाहते हैं तो सावधान! सूत्रों की माने तो इस बार भी रब्बी सीजन में मुनाफाखोरों ने मिलावटी खाद-बीज व कीटनाशकों की एक बड़ी खेप को खपाने के लिए बाजारों में उतार रखी है। इस गोरखधंधे में शामिल मुनाफाखोर अनाप-शनाप दाम वसूल कर अपना तिजोरी भर खुद मालामाल हो रहे हैं तो दूसरी ओर किसान बेहाल व कंगाल बन रहे हैं। तब न कभी मक्का की बाली सूनी तो कभी धान के पौधों में दाना खाली। जो खाद-बीज में मिलावट या नकली होने की पुष्टि करता हैं। बताया जाता है कि इस धंधे में शामिल मुनाफाखोरों द्वारा नए बीज में पुराने बीज मिलाकर पैकिंग कर दिया जाता है। जिससे बीज का अंकूरण क्षमता कम हो जाती है। मिलावटी खाद भी बाजारों में खुलेआम बेची जाती है। डीएपी में पत्थरों के छोटे-छोटे गोल टुकड़े, यूरिया में नमक व पोटाश में लाल बालू मिलाकर उसे खपाया जाता है। इतना ही नहीं बल्कि जिले में सैकड़ों दुकानदार बिना अनुज्ञप्ति के इस गोरखधंधे में चांदी काट रहे हैं।
क्या कहते हैं किसान : रानीगंज प्रखंडाधीन पंचायत खरहट के प्रगतिशील कृषक डा. राजेश मंडल, अररिया प्रखंड अंतर्गत पंचायत कुसियारगांव के प्रगतिशील किसान, अशोक सिंह बताते हैं कि पिछले रब्बी सीजन में भी उन्होंने नियमानुकूल खेती की, लेकिन मक्का के बाली सूनी देख उनके साथ ही सैकड़ों किसानों के चेहरे पीले पड़ गये। उन्होंने बताया कि स्थानीय स्तर पर बिना अनुज्ञप्ति के दुकानदार खाद-बीज अनाप शनाप मूल्यों पर धड़ल्ले से बेच रहे हैं। जो किसानों को कैसमेमो भी नहीं देते। इसके लिए किसान विभागीय अधिकारियों की सांठ-गांठ या उदासीनता को जिम्मेवार ठहराते हैं।
क्या कहते हैं जिला कृषि पदाधिकारी :- उक्त बाबत डीएओ वैद्यनाथ प्रसाद यादव बताते हैं कि शीघ्र ही जिले के सभी नौ प्रखंडों के कृषि पदाधिकारियों को ऐसे खाद-बीजों के नमूने एकत्रित करने व प्रयोगशाला में जांच कराने संबंधित प्रशिक्षण दिया जायेगा। शत-प्रतिशत गुणवत्ता नहंी पाए जाने पर उनके विरुद्ध ठोस व कड़ी कार्रवाई की जाएगी। साथ ही छापा मारकर बिना अनुज्ञप्ति के खाद-बीज बेच रहे दुकानदारों के विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी। हालांकि, डीएओ श्री यादव स्वीकारते हैं कि इस जिले के किसानों की मांग के अनुरूप सरकारी स्तरों पर खाद आपूर्ति कम मिल रही है। फलस्वरूप किसानों को बाजारों या बगल के जिलों पर निर्भर रहना पड़ता है। उन्होंने खाद की कालाबाजारी होने की बातें भी कही। इसे रोकने के लिए उन्होंने आवश्यक कार्रवाई करने की बातें भी कही।

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