Thursday, November 11, 2010

कमाल क्वैक का: छोटी बीमारी महंगा इलाज

अररिया, निसं.: छोटी बीमारी महंगा इलाज यानी कमाई के साथ-साथ नाम का लोभ भी कि देखो कितने कम पैसों में इलाज हो जा रहा है। ख्याति भी, साथ ही सेवा 24 घंटे। क्यों न गांवों में फले-फूले झोला छाप चिकित्सा प्रणाली? सत्ता व शासन द्वारा स्वास्थ्य सेवा के मामले में गांवों की उपेक्षा से उत्पन्न ग्रामीण क्षेत्रों में झोला छाप चिकित्सीय ढांचा सर्वशक्तिमान बना हुआ है। बीमारी को लेकर शहर या अस्पताल पहुंचने में दो से तीन घंटे लगते है,लेकिन झोला छाप पांच मिनट में ही दरवाजे पर उपलब्ध। उस पर भी पैसे का कोई झमेला नहीं। उधारी काम, बाद में भी मिलेगा तो चलेगा। लेकिन इन रोगियों को यह पता नहीं है कि सामान्य बीमारी में भी उनका हर तरफ से शोषण ही होता है। जहां पचास से एक सौ रुपये में सामान्य बीमारी का इलाज संभव है। उसके लिए उन्हें पांच सौ से एक हजार रुपये चुकाने पड़ते हैं। इसका मूल कारण है झोला छाप डाक्टरों के नालेज व अनुभव में कमी। एक चिकित्सक किसी भी बीमारी में रोगी को एक एंटीबायटिक देते हैं लेकिन झोला छाप चार से पांच। कोई तो सूट कर ही जायेगा। अधिक दवा देने से अलग से भी कमाई। इस संबंध में एक चिकित्सक बताते हैं कि झोला छाप डाक्टरों को सस्ता इलाज करने के लिए उन्हें प्रशिक्षण दिया जाना आवश्यक है,अन्यथा रोगियों को स्थिति बिगड़ती रहेगी। इसका मुख्य कारण हाल के दिनों में दवा के मूल्य में वृद्धि होना भी बताया जा रहा है।

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