Monday, November 14, 2011

ग्रामीण युवाओं पर सिर चढ़कर बोल रहा फैशन का जादू

फारबिसगंज (अररिया): फैशन और आधुनिकता की महक अब गांवों तक पहुंच गयी है जिससे ग्रामीण भारत का परिवेश में धीरे धीरे बदलाव आ रहा है। इसके वाहक बने हैं आज के टीन एजर और युवा वर्ग। बड़े शहरों को छोड़िये, कस्बाई इलाके, छाटे शहरों और गांवों में फैशन का रंग इन ग्रामीण युवाओं पर सिर चढ़कर बोल रहा है। ग्रामीण टीनेजर और युवाओं का ड्रेस कोड अब बदल चुका है। गांवों की सड़कों पर 150 सीसी की तेज रफ्तार वाली बाइक पर सवार युवा हाथों में मोबाइल, कान से लगा इयर फोन, पैर में जूते, रंग-बिरंगे स्टाइलिस जिंस, बिना कालर वाले टाइट फिटिंग टी-शर्ट.. वाले टीन एजर आसानी से दिख जाते हैं। अब वह जमाना गया जब गांव में 15 वर्ष का लड़का हाफ पैंट और ढीला ढाला कमीज पहनता था। खासकर
नेपाल से सटे सीमावर्ती क्षेत्र फारबिसगंज के ग्रामीण इलाकों में ऐसे युवाओं की टोली अक्सर देखी जा सकती है। इनमें अशिक्षित गरीब, किसान, मजदूर किस्म के परिवार से लेकर संपन्न परिवारों के युवा शामिल हैं। इस नये बदलाव में गांवों में हो रहे विकास का काफी योगदान रहा है।
-नयी सड़कों व टीवी का बड़ा योगदान
दरअसल दशकों से जर्जर पड़ी सड़कों के नवनिर्माण व शहरों को जोड़ने के लिए गांव में बनी नयी नयी सड़कों से शहर-गांव की दूरियां कम हो गई है। शिक्षा, रोजगार, मजदूरी व व्यवसाय के लिये अधिक युवा गांवों से निकल कर शहरों से जुड़े हैं। जहां वे लेटेस्ट फैशन से आसानी से जुड़ जाते हैं। मजदूर दूसरे प्रदेशों में रोजगार के अवसर ढूंढने जाते हैं और घर वापसी में रंग-बिरंगे, मोबाइल और कपड़े लेकर आते हैं।
अध्ययनरत युवा भी शहरों से नये प्रचलन गांवों की गलियों तक पहुंचाते हैं। उधर, गांव-गांव के प्राय: हर घरों में टीवी कनेक्शन पहुंच गया है। ग्रामीण इलाकों में टीवी की पहुंच ने भी नये ट्रेंड को हवा दी है।
-विरोधाभास के बीच परिजनों की मौन स्वीकृति
इस नये ट्रेंड को लेकर ग्रामीण सोच का नजरिया भी बहुत हद तक बदला है। हालांकि नाना-दादा सरीखे बुजुर्ग इस युवाओं का भटकाव मानते हैं। लेकिन युवाओं के माता-पिता इसे अपने बच्चों के स्वाभाविक विकास का हिस्सा मानते हुए पाबंदियों के साथ मौन स्वीकृति भी दे रहे हैं। ग्रामीण रतन ठाकुर बताते हैं कि आज के माता-पिता अपनी हैसियत और रूतबे के अनुसार अपने युवा हो रहे बच्चों के शौक को पूरा करने में मदद भी करते हैं। गांवों में पहुंची शहरी परिवेश को लेकर परिवार के युवा और बुजुर्गो के बीच वैचारिक विरोधाभास जरूर है।
बहरहाल, गांवों की खुली हवा में नया ट्रेड घुल-मिल चुके हैं। इन ग्रामीण युवाओं की रफ्तार पर ब्रेक लगाना संभव नही दिख रहा है।

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