Wednesday, November 2, 2011

मंदिर की घंटियों में छुपे हैं इतिहास के रहस्य


अररिया : अररिया व आसपास के मंदिर में बंधी घंटियों व ताम्रलेख में इतिहास के कई गूढ़ रहस्य छुपे हैं। इन घंटियों पर कई अभिलेख अंकित हैं, जिनका विधिवत अध्ययन अब तक नहीं किया जा सका है।
विदित हो कि मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु सदी दर सदी मंदिर परिसर में घंटी बांधते रहे हैं। कई मंदिरों में ताम्रलेख भी लगे हैं। इन पर देवनागरी व तिरहुता लिपियों में कई अभिलेख अंकित हैं। मदनपुर के प्रसिद्ध शिवमंदिर परिसर में एक विशाल घंटा बंधा हुआ है। मंदिर के महंथ पं. शिव सुंदर भारती के अनुसार यह घंटा सन 1874 में मोरंग नेपाल के मोरंग निवासी एक जमींदार हेदराज राजवंशी ने अपनी मन्नत पूरी होने पर शिव के दरबार में अर्पित किया था। इसी तरह मंदिर के परिक्रमा पथ में भी कई घंटियां बंधी हैं। इनके संबंध में महंथ ने बताया कि श्रद्धालु मंदिर में प्रवेश करते वक्त घंटा बजाते हैं, जो शायद इस बात की इत्तला है कि बाबा मैं आपके दरबार में आ रहा हूं। इन पर घंटा लगाने वाले भक्त अपना नाम भी अंकित करवा देते हैं।
नेपाल के प्रसिद्ध धर्मिक स्थल वराहक्षेत्र स्थित कोका मुख स्वामी मंदिर में भी कई घंटियां बंधी हैं, जिन पर लिखे लेख का अध्ययन नहीं हो पाया है। इस मंदिर को समर्पित एक ताम्रलेख से पता चलता है कि गुप्त वंश के शासक देवगुप्त व बुधगुप्त ने नेपाल तराई से लगती कोटिवर्ष प्रदेश की संपदा मंदिर को दान में दी थी।
वहीं, नेपाल के ही धरान स्थित दंतकाली मंदिर व पिंडेश्वर मंदिर में एक दो नही सैकड़ों छोटी बड़ी घंटियां बंधी हुई हैं। मंदिर परिसर में सोमचरण आचार्य नामक व्यक्ति ने बताया कि इन घंटियों को लगाने के पीछे स्थानीय लोगों की मान्यता है कि इससे उनका जीवन हमेशा सुखमय बना रहेगा। लोग मंदिर में मन्नत मानते हैं और उसके पूरा होने पर घंटी अर्पित करते हैं। सब घंटियों पर दाता का नाम व अन्य बातें लिखी रहती हैं।
इधर, अररिया जिले के बसैटी शिव मंदिर में प्रवेश द्वार पर विशाल ताम्र लेख लगा हुआ है। इस ताम्रलेख पर मंदिर के संस्थापक राजा व उनके पूर्वजों का इतिहास अंकित है। इस लेख की भाषा संस्कृत तथा लिपि तिरहुता है।
इसके अनुसार मंदिर की स्थापना सन 1797 में पूरैनिया राजा के वंश की आखिरी शासक महारानी इंद्रावती द्वारा की गयी थी। इस लेख से पता चलता है कि महारानी के पति महाराज इंद्र थे, जिनके पिता महाराजा रामचंद्र थे। लेख को लिखने वाले का नाम पं. शुभनाथ मिश्रा था।
बहरहाल इतना तय है कि इस इलाके में मदिरों की घंटियों व लेखों का अध्ययन क्षेत्र के इतिहास पर गहरी रोशनी डाल सकता है।

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