Friday, June 10, 2011

गतिरोध:ढांचागत विकास के बीच शिक्षा की चमक फीकी


-घोटाले के तले कराह रही है शिक्षा
डा.अशोक झा, अररिया : गुरम्ही खबासपुर की फुलिया का ताल्लुक महादलित समुदाय से है। उसके मां बाप निरक्षर हैं, लेकिन वह पढ़ना चाहती थी। सो गांव के स्कूल में उसका नाम लिख लिया गया। लेकिन फुलिया को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। वह अभी भी घर में ही रहती है। विगत कई महीने से मास्टर जी इलेक्शन में ही व्यस्त हैं, उससे पहले जनगणना के कारण पढ़ाई बंद थी। शिक्षा का अधिकार भले ही कानून बन चुका हो, फुलिया जैसी हजारों बच्चियां इस जिले में हैं, जिनकी पढ़ने की इच्छा पूरी नहीं हो रही।
बहाने हजारों हैं। शिक्षा क्षेत्र में ढांचागत विकास जरूर दिख रहा है, पर इस चमक के पीछे व्यवस्था का खोखलापन भी साफ झलकता है। हर साल हजारों बच्चे ड्राप आउट होते हैं। लेकिन बच्चों को स्कूल के प्रति आकर्षित करने की ठोस पहल नहीं होती। प्रयास केंद्र, उत्कर्ष, तालीमी मरकज ..
शिक्षा के नाम पर एक नहीं कई औपचारिकताएं जरूर होती हैं।
शिक्षा क्षेत्र में हर वर्ष सौ करोड़ से भी अधिक की राशि प्रति वर्ष खर्च होती है। लेकिन विभागीय ढिलाई की वजह से जिले में शिक्षा के घोटालेबाज भी खूब पनपे हैं।
स्कूल भवन के मामले में तो
घोटालों की पूरी श्रृंखला ही है। सौ से अधिक स्कूल बिल्डिंग के लिए हेडमास्टरों ने राशि निकाल ली, पर भवन नहीं बनाये। घोटालेबाजों ने अस्सी लाख से अधिक के चेक फर्जी तरीके से कैश करा लिए। प्राथमिकी दर्ज हुई, लेकिन कांड किसी तार्किक परिणति तक नहीं पहुंचा।
जिला शिक्षा अधीक्षक अहसन ने बताया कि ऐसे चार दर्जन से अधिक हेड मास्टरों के विरुद्ध निलंबन की कार्रवाई की गयी है, जिन्होंने पैसे निकाल कर भी भवन नहीं बनाये।
शिक्षा के अधिकार की यहां हर रोज धज्जियां उड़ती हैं। जिले में सौ से अधिक स्कूल भवनहीन व भूमिहीन
बने हैं। जरा बताएं कि यहां के बच्चे किस प्रकार अपनी पढ़ाई करते हैं?
स्थिति अराजक है। जिला मुख्यालय के भगत टोला में वर्षो पहले प्राथमिक विद्यालय स्वीकृत हुआ। मुहल्ले में बिहार सरकार की कई एकड़ जमीन भी उपलब्ध है, लेकिन विभागीय अधिकारियों ने जमीन नहीं होने का बहाना बना कर स्कूल को मुहल्ले से ही हटा दिया। इन दिनों प्रावि भगतटोला अपने मूल जगह से चार किमी दूर जयप्रकाशनगर स्थित अंबेडकर सेवा संस्थान के कैंपस में चल रहा है। जबकि वहां पहले से ही एक
स्कूल है।
जिले के स्कूलों में छात्रों की बढ़ी संख्या क मद्देनजर शिक्षक कम पड़ रहे हैं।
स्कूलों के शिक्षक गैरशिक्षक कार्य में नहीं भी लगें तो भी जिले में प्रति शिक्षक तीस छात्र का अनुपात पूरा नहीं होता।
मध्याह्न भोजन योजना में भी सबकुछ ठीकठाक नहीं है।
हाल के दिनों में जिले के एमडीएम प्रभारी पदाधिकारी
द्वारा किये गये निरीक्षण में ढेर सारे स्कूलों में एमडीएम योजना बंद मिली है। स्तरहीन भोजन व कीड़ा मिलने की शिकायत आम है। वहीं चार दर्जन से अधिक प्राथमिक व मध्य विद्यालयों में प्रभार व खाता संचालन की समस्या से एमडीएम बंद है।
माध्यमिक व उच्च शिक्षा के मामले में इस जिले के साथ भेदभाव हो रहा है। जिले में चालीस हाई स्कूल, दो अंगीभूत कालेज, तीन संबद्ध कालेज तथा एक दर्जन इंटर कालेज हैं। जानकारों की मानें तो 29 लाख की आबादी वाले इस जिले के लिए यह संख्या कम है।
वहीं, जिले में पहले से कार्यरत हाई स्कूलों का हालचाल भी ठीक नजर नहीं आता। प्रबंधन समिति विवाद के कारण भवन निर्माण, खेलकूद सामग्री खरीद, खेल मैदान विकास की लगभग ढाई करोड़ की राशि प्रबंधन वापस कर दी गयी है।

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