Wednesday, June 8, 2011

मौत से उठे बवंडर में फंसी क्षेत्र के विकास की लौ


- फैक्ट्री निर्माण पर लगा प्रश्न चिन्ह, रोजाना 800 टन मक्का की होती खपत
विजय कश्यप / फारबिसगंज (अररिया) : पिछड़ेपन के लिये आदर्श माने जाने वाले सीमावर्ती फारबिसगंज सहित कोसी-सीमांचल में हरित क्रांति की आशाएं धूमिल होती दिख रही है। स्टार्च फैक्ट्री से इस क्षेत्र में हजारों लोगों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर रोजगार मिलने की संभावनाएं यहां क्षीण होती नजर आ रही है। बियाडा की जमीन पर निर्माणाधीन स्टा्रर्च फैक्ट्री के बीचो-बीच सार्वजनिक सड़क की मांग को लेकर तीन जून को ग्रामीणों तथा पुलिस के बीच हुई हिंसक झड़प और फिर पुलिस फायरिंग में चार ग्रामीणों की मौत से उठे बवंडर में उम्मीदों का दम घूटने लगा है। स्टार्च फैक्ट्री के पूरा होने पर प्रश्न चिन्ह लग गया है। दिसंबर 2011 से फैक्ट्री में स्टार्च (ग्लूकोज) बनाने का लक्ष्य निर्धारित था जो अब लक्ष्य से पीछे चला गया है।
सड़क मांग को लेकर तीन जून से पूर्व भी करीब चार बार निर्माणाधीन फैक्ट्री परिसर में आस-पास के ग्रामीणों तथा फैक्ट्री कर्मचारियों के बीच झड़प हो चुकी है।
ओरो सुंदरम इंटरनेशनल प्राइवेट लि. द्वारा करीब 130 करोड़ रुपये की लागत से ग्लूकोज बनाने की फैक्ट्री लगाई जा रही है। कंपनी के निदेशक अशोक चौधरी बताते है कि मक्का से ग्लूकोज बनाया जाएगा तथा तीन मेगावाट बिजली भी उत्पादन होगा। जिसके लिये पहले फेज में प्रतिदिन 300 टन मक्का की खपत होनी है। उत्पादन को विस्तार देने के बाद दूसरे फेज में 500 टन तथा तीसरे फेज में 800 टन मक्का के खपत से लिक्विड ग्लूकोज बनाने की योजना है। जिससे क्षेत्र के किसानों की आर्थिक स्थिति सुधरेगी तथा इस अति पिछड़े क्षेत्र में विकास की संभावनाओं को आधार मिलेगा। लेकिन ताजा घटना क्रम से इन सभी उम्मीदों को गहरा झटका लगा है। परियोजना पर सवाल खड़ा हो गया है। कंपनी के निदेशक श्री चौधरी ने कहा कि ऐसे हालत में फैक्ट्री में आगे का काम करना मुश्किल हो गया है। फैक्ट्री निर्माण को पूरा करने के सवाल पर उन्होंने कहा कि अब फिलहाल कोई अंतिम निर्णय नही लिया गया है। कहा कि फैक्ट्री का काम बंद कर वे वापस जा सकते है।
दरअसल बियाडा के द्वारा 1980-81 में औधोगिक क्षेत्र विकसित करने के लिये किसानों की जमीन अधिग्रहित किया था। वर्ष 2009 में कंपनी को 35.65 एकड़ जमीन फैक्ट्री लगाने हेतु बियाडा द्वारा लीज पर दिया गया था। इसी जमीन पर बनी एक सड़क से आसपास के ग्रामीण शहर की और वर्षो से आते-जाते रहे हैं। बीते एक जून को बियाडा अधिकारियों ने ग्रामीणों के साथ बातचीत कर फैक्ट्री के ठीक बगल से अर्थात पहले की सड़क से महज तीन सौ मीटर दूर स्थित एक अन्य सड़क से आने-जाने पर समझौता हो गया था। लेकिन कुछ लोगों की निजी स्वार्थ ने तीन जून को स्थित ही बदल दी और विकास की संभावनाओं को झटका दे दिया।

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