अररिया : नदियों के साथ जीना अररिया जिले की संस्कृति रही है। लेकिन इस संस्कृति पर सरकारी उदासीनता की चोट पड़ रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि यहां के राजनीतिक व प्रशासनिक नेतृत्व की वरीयता सूची में जल प्रबंधन नहीं है। जबकि खेती को समृद्ध करने तथा आम जनजीवन को बाढ़ की विभीषिका से मुक्ति दिलाने के लिए यह बेहद जरूरी है।
जानकारों की मानें तो नदियों को आपस में जोड़ कर इस जिले को बाढ़ की तबाही से निजात दिलाया जा सकता है। इस जिले में एक दर्जन बड़ी तथा दो दर्जन छोटी नदियां हैं। इसके अलावा सौ से अधिक कुदरती वाटर ड्रेन हैं, जिनसे बरसात के दिनों में पानी का प्रवाह होता है। लेकिन इनके बीच आपस में कोई संपर्क नहीं है। अगर है भी तो वह डाउन स्ट्रीम में, जहां तक पहुंचने से पहले पहाड़ों से आने वाला पानी इस क्षेत्र में भारी प्रलय मचा चुका होता है।
चालू गर्मी के शुरूआती दिनों में कोसी व सेंट्रल पूर्णिया प्लान की दो एक को छोड़, तकरीबन सारी नदियां सूख गयी। जबकि महानंदा परमान कनकई प्लान की नदियों में जल था। बात इसी पानी के प्रबंधन की हो रही है। क्या महानंदा प्लान की नदियों में जगह-जगह चैक डैम बनाकर पानी का ठहराव हासिल नहीं किया जा सकता?
वहीं, नदियों के प्रवाह मार्ग में बड़े पैमाने पर सिल्ट की डिपाजिट के कारण उनकी ड्रेन क्षमता घट गयी है। छोटे डेम पानी को रोककर डिसिल्टिंग में मदद कर सकते हैं। इतना ही नहीं नदियों के बीच आपसी संपर्क से पानी को एक संपदा के रूप में भी विकसित किया जा सकता है।
नदी जोड़ को लेकर उदासीनता साफ झलकती है। बात अगर राजनीतिक तबके की करें तो वह घूम फिर कर नेपाल में हाई डैम निर्माण पर अटक जाती है।
साइड स्टोरी
आत्मघाती होगा नेपाल में हाई डैम का निर्माण
अररिया, जाप्र: नेपाल में वराह क्षेत्र स्थित सप्तकोसी नदी में हाई डैम निर्माण की चर्चा खूब होती है। लेकिन जानकारों की मानें तो हाई डैम का निर्माण बिहार के हित में नहीं है।
प्रसिद्ध नदी लेखक हवलदार त्रिपाठी सहृदय के अनुसार वराह क्षेत्र में हाई डैम बनाने में जितना सीमेंट, बालू व गिट्टी खर्च होगा उससे उत्तर ध्रुव से दक्षिण ध्रुव तक टू लेन की पीसीसी सड़क बन सकती है।
अगर डैम बना तो उसकी ऊंचाई कुतुब मीनार से तीन गुना से भी ज्यादा होगी। जाहिर है कि अप स्ट्रीम में भी बेहद ऊंचा वाटर टावर बन जायेगा। इससे पर्यावरण को तो जो क्षति हो, अगर कभी चाहे भूकंप के कारण या फिर किसी टेररिस्ट गतिविधि की वजह से अगर डैम टूटा तो महा जल प्रलय को कोई रोक सकेगा क्या?
बाढ़ के प्रमुख कारण:
-नदियों के बेड में बड़ी मात्रा में सिल्ट डिपाजिट
-नेपाल के जल ग्रहण क्षेत्र में वर्षा
-कोसी का पानी परमान व बकरा आदि में छोड़ा जाना
-बाढ़ व बरसात के बारे में सरकार द्वारा नेपाल के साथ समुचित समन्वय की कमी
-मौसम व जलग्रहण क्षेत्र से पानी के इनपुट पूर्वानुमान की व्यवस्था नहीं
- नेपाल में नदियों के उद्गम स्थल में वन विनाश
-वृक्ष कटाई के कारण नदियों का निरंतर धारा परिवर्तन
-भारतीय क्षेत्र में जल प्रबंधन के प्रति उदासीनता
बाढ़ की समस्या से निदान के उपाय:
- नदियों को आपस में जोड़ना
-नदियों के जल ग्रहण क्षेत्र में पानी का प्रबंधन
-विलुप्त हो रहे प्राकृतिक जलाशयों का विकास
-परमान समूह की नदियों में चैक डेम का निर्माण
-नेपाल के साथ पानी के इनपुट को ले सार्थक समन्वय
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