अररिया : सीमावर्ती अररिया जिले में मरीजों की दवा को काला बाजार में बेचा जा रहा है। खांसी पीड़ित मरीजों को कफ सीरप बमुश्किल मिल रहा है। वहीं नशेड़ियों को यह आसानी से उपलब्ध हो रहा है। कफ सीरप को धड़ल्ले से नशे के रूप में उपयोग किया जा रहा है। मरीजों को भले ही सीरप नहीं मिले, लेकिन नशेड़ियों को यह आसानी से मिल जा रहा है।
कफ सीरप की कालाबाजारी रोकने के लिए न तो स्वास्थ्य विभाग कोई ठोस रणनीति बना पा रही है और न ही जिला प्रशासन किसी तरह की कारवाई कर रहे हैं। अमूमन देखा जाता है कि डॉक्टर का चिट्ठा लेकर कोई दुकानों पर जाता है तो उसे कम दाम व कम फायदा वाला कफ सीरप थमा दिया जाता है। लेकिन वैसे युवकों को जो रोजाना सुबह व शाम कई बार कॉरेक्स, पेसोड्रील, फैन्सीड्रील आदि लेते हैं उन्हें बिना चिट्ठा के प्रत्येक बोतल पर 20 से 30 रुपये अधिक लेकर दवाई दुकानदार देते हैं। काली मंदिर चौक, चांदनी चौक, अस्पताल चौक, जीरोमाईल के चाय-नास्ता दुकानों पर कफ सीरप आसानी से मिल जाता है।
जिला मुख्यालय में ही नहीं फारबिसगंज अनुमंडल क्षेत्र के दवा दुकानों में भी नकली कफ सीरप बेचे जा रहे हैं। विदित हो कि अररिया में पिछले दिनों भारी मात्रा में नकली कफ सीरप जब्त किया गया था।
कोट :
शीघ्र ही दस्ता बनाकर दवा दुकानों पर छापेमारी की जाएगी। शहर के कुछ दवा दुकानों के बारे में पता चला है कि उनके अवैध गोदाम में कफ सीरप का स्टॉक है। जो भी दुकानदार अधिक दामों पर कफ सीरप को नशेड़ियों के हाथों बेच रहे हैं, उनपर कारवाई की जाएगी।
डॉ. विनोद कुमार, अनुमंडल पदाधिकारी
कोट :
मामले की जांच करवाई जाएगी। अगर शिकायत सही पाई गई तो कफ सीरप वितरण पर रोक लगा दी जाएगी। कफ सीरप की ब्लैक मार्केटिंग करने वाले दुकानों पर ड्रग इंस्पेक्टर द्वारा छापेमारी की जाती है।
डॉ. सीके सिंह, सिविल सर्जन
कोट :
एक बोतल सीरप में व्याप्त अल्कोहल की मात्रा के कारण पीने वाले को कुछ देर के लिए नशा रहता है। उसका असर खत्म होने पर उसे फिर से सीरप पीने की इच्छा होती है।
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