Saturday, May 28, 2011

सत्कर्मो से ही संभव है मुक्ति व मोक्ष: महर्षि हरिनंदन


अररिया : शरीर के बंधन में दुख भोगना ही पड़ेगा। भक्ति करो, तो मुक्ति मिलेगी। भक्ति के बिना आवागमन के चक्र से निस्तार संभव नहीं है। उक्त बातें संतमत सत्संग के वर्तमान आचार्य महर्षि हरिनंदन परमहंस जी महाराज ने वार्ड नं14 स्थित सत्संग मंदिर में आयोजित एक सत्संग में कहीं।
महर्षि जी ने कहा कि व्यक्ति परमात्मा का अंश होता है, लेकिन शरीर रुपी बंधन के कारण वह परवश है। उसे दैहिक, दैविक व भौतिक तापों का सामना करना पड़ता है। इसी लिए शरीर रुपी बंधन से छुटकारा आवश्यक है। उन्होंने कहा कि इसके लिए सत्संग बेहद जरूरी है। क्यों कि सत्संग से ज्ञान मिलता है, ज्ञान से ध्यान करने की पात्रता हासिल होती है और अंतत: मोक्ष की प्राप्ति होती है।
महर्षि हरिनंदन परमहंस ने जीवन में कर्म की प्रधानता प्रतिपादित की। महर्षि के शब्दों में यह विश्व कर्मभूमि है, कर्मक्षेत्र है, कर्म के अनुसार ही सबको उसका फल भोगना पड़ता है।
उन्होंने कहा कि कर्म फल कई जन्मों तक पीछा करता रहता है। पाप का फल दुखभोग के रूप में रो रो कर करना पड़ता है। पुण्यकर्म का फल सुखदायी होता है, जिसे हर कोई पाना चाहता है। लेकिन वह भी एक प्रकार का बंधन ही है। इन से मुक्ति के लिए सत्संग व योग ध्यान आदि आवश्यक है।
उन्होंने कहा कि संचित कर्म का फल ही प्रारब्ध है और प्रारब्ध का सामना प्रत्येक व्यक्ति को करना पड़ता है।
स्व. बेनी शर्मा की स्मृति में आयोजित इस कार्यक्रम में
हरिनंदन बाबा के साथ नरेशानंद बाबा, स्वरूपानंद बाबा, रमेशानंद, कृष्ण वल्लभ बाबा, परमानंद, खन्ना बाबा, नारायण बाबा, झीटलाल बाबा आदि उपस्थित थे। इस अवसर पर स्तुति, विनती, ग्रंथ पाठ व भजन कीर्तन के अलावा भंडारा का भी आयोजन किया गया।
कार्यक्रम की सफलता के लिए रंजन शर्मा, विजय शर्मा, हरि शर्मा, दिलीप साह, राज किशोर साह, तारानंद दास, गंगा प्र.शर्मा, रामकिशोर शर्मा आदि सक्रिय दिखे।

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