Tuesday, March 6, 2012

किसान भूखा रहेगा तो देश कैसे बचेगा?


अररिया : इन दिनों अररिया के किसान पशोपेश में हैं। आखिर करें तो क्या? पहले नील गया फिर रेशम और अब जूट की बारी है। इसके अलावा कई दशक से बाढ़ व सूखे की दोहरी मार। इस साल धान की बंपर फसल हुई तो उसे कोई लेने वाला नहीं। यहां के किसानों को समस्याएं ही समस्याएं हैं। वहीं, सरकार द्वारा लागू कृषि परियोजनाओं में बिचौलियों का बोलबाला है।
अररिया जिले में 94 प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है तथा इनमें से नब्बे फीसदी लोग अपनी जीविका के लिए खेती पर ही निर्भर हैं। लेकिन मौसम की मार के कारण किसानी में फायदा न होता देख इनमें से तकरीबन चार लाख युवा रोजगार के लिए बाहर के प्रांतों की ओर पलायन कर गए हैं।
एक जमाने में नील यहां की प्रमुख कैश क्राप थी, लेकिन सिंथेटिक नील के आगमन ने नील को लील लिया। इसके बाद नगदी फसल के रूप में किसानों ने जूट को अपनाया। लेकिन प्लास्टिक बैग के बढ़ते प्रयोग तथा सरकारी उपेक्षा के कारण अब जूट भी जा रहा है। आरटी मोहन गांव के किसान अशोक यादव, दिलीप यादव, पिंटू भगत आदि कहते हैं कि जब किसानों के घर में जूट होता है तो उसकी कीमत बारह सौ रुपये क्विंटल और उनके हाथ से क्राप निकलते ही इसकी कीमत तीन हजार रुपये प्रति क्विंटल पहुंच जाती है। कम कीमत के कारण किसानों को फसल की लागत भी नहीं वसूल हो पाती। वहीं, घोड़ाघाट के किसान जगन्नाथ झा, महेंद्र मंडल, शंभू नाथ झा आदि के अनुसार किसानों को अपनी फसल की कीमत तय करने का अधिकार नहीं, लेकिन वे ही जब खाद व बीज खरीदने जाते हें तो उन्हें सामान्य से कहीं अधिक कीमत देनी पड़ती है।
इस बार धान की बंपर फसल हुई है, लेकिन इसकी सरकारी खरीद में पेंच ही पेंच हैं। जानकारों की मानें तो इस साल लगभग साढ़े छह लाख टन धन उपजा है, लेकिन खरीद का लक्ष्य मात्र 45 हजार टन ही रखा गया है। उसमें भी हर स्तर पर बिचौलिया।
वहीं, कृषि विकास की योजनाओं पर नजर दौड़ाएं तो किसानों की समस्या विकराल रूप में दिखती हैं। सरकार ने खेती व बागवानी के विकास के लिए तमाम तरह के विभाग बनाए हैं। कृषि यांत्रीकरण जैसी महत्वपूर्ण योजना पर जोर दिया जा रहा है। लेकिन बिचौलियों के कारण इन योजनाओं का लाभ किसानों तक पहुंच नहीं रहा है। किसानों के लिए दिया जाने वाला सरकारी अनुदान विभागीय मिलीभगत से बिचौलिए खा जाते हैं।
पिछले माह अररिया के एसपी शिवदीप लांडे ने जब जीरो माइल स्थित एक फर्म के दफ्तर पर छापा मारा वहां से योजना के फर्जीवाड़ा व अनुदान घोटाला से जुड़े कई सबूत हासिल हुए।
अधिकतर कृषि अधिकारियों को खेती के विकास व किसानों की समस्याओं के प्रति रुचि नहीं रहती। इस बात का प्रमाण यह है कि जब एसपी ने परवाहा स्थित खाद कालाबाजारियों के गोदाम पर छापा मारा तो सूचना देने पर भी फारबिसगंज के प्रखंड कृषि अधिकारी वहां नहीं पहुंचे। वहीं, कृषि यंत्र घोटाले में जोकीहाट के बीएओ पर गंभीर आरोप लगे।
इधर, जिला कृषि पदाधिकारी नईम अशरफ की मानें तो कृषि विभाग किसानों के विकास के लिए कृतसंकल्प है। किसानों को मूंग का उपचारित बीज दिया जा रहा है। वहीं, उन्हें राज्य स्तरीय कृषि मेले में थ्रेसर, रीपर, वीडर व टीलर जैसे यंत्र अनुदान पर उपलब्ध करवाये जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि अररिया में भी आगामी 22 मार्च को कृषि मेले का आयोजन कर किसानों की समस्या दूर की जायेगी।

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