Wednesday, March 7, 2012

लीड: अररिया : नदी जोड़ दिला सकता है बाढ़ से निजात


अररिया : हिमालय से निकलने वाली नदियों की गोद में बसे अररिया जिले में बाढ़ व कटाव की समस्या विकराल बनी रहती है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट द्वारा नदियों को जोड़ने के संबंध में दिया गया फैसला उम्मीद की किरण बन कर सामने आया है। बाढ़ की विभीषिका से जूझते जिला वासियों के लिए यह निर्णय संजीवनी की तरह है।
अररिया जिले की 94 प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है तथा तकरीबन नब्बे फीसदी लोग खेती पर ही आश्रित हैं। लेकिन जल प्रबंधन की उपेक्षा के कारण यह जिला हर साल बाढ़ व सुखाड़ दोनों की विभीषिका झेलता है। इस कारण जिले की कृषि जन्य अर्थव्यवस्था चरमरा गई है तथा लगभग चार लाख लोग पलायन कर बाहर के प्रांतों में चले गए हैं। वहीं, कटान की समस्या ने जिले के कई दर्जन गांवों में रहने वाले हजारों परिवारों को पीड़ित कर रखा है।
इधर, नदियों के जोड़ की बात इलाके में विगत दो दशकसे सामुदायिक चर्चा का विषय रही है। जानकारों का मानना है कि नदियों के आपसी गठजोड़ से इलाके में खेती, मछली पालन, जल संरक्षण को मजबूती मिलने के साथ-साथ जिले को बाढ़, जल जमाव व कटान जैसी चिरंतन समस्या से भी निजात मिल सकती है।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा नदी जोड़ परियोजना के क्रियान्वयन की घोषणा से इलाके में उम्मीद की किरण जगी थी, लेकिन वर्तमान सरकार द्वारा इस प्रोजेक्ट को खटाई में डाल दिए जाने से लोग निराश हो गए थे। अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले से उम्मीद की किरण एक बार फिर जगी है।
ज्ञात हो कि अररिया जिला तीन फ्लड प्लानों के अधीन बसा हुआ है। सबसे पूरब के इलाके में परमान-कनकई प्लान है, जिसमें कनकई, परमान, बकरा, रतवा, नूना आदि नदियां हैं। इन नदियों में पानी की आवक असमान रहती है। बकरा नदी में जल का बहाव न केवल तेज रहता है बल्कि इसमें वाटर ड्रेन भी अधिक है। जानकारों की मानें तो जब बकरा उफान पर रहती है तो परमान व अन्य नदियों में पानी कम रहता है।
लगभग ऐसी ही स्थिति दो अन्य फ्लड प्लानों की भी है। सेंट्रल पूर्णिया प्लान में बहने वाली नदियों में बरसात का पानी आता है। वहीं, कोसी फ्लड प्लान की नदियां गहरी हैं, लेकिन इनमें जल की कमी रहती है। कोसी फ्लड प्लान क्षेत्र में भूगर्भीय जल स्तर के भी नीचे जाने की बात सामने आने लगी है।
लिहाजा जानकार यह मानते हैं कि नदियों का जोड़ पानी के सम वितरण में सहायक साबित हो सकता है। पूरब की नदियों का पानी पश्चिम की धाराओं में जाने से बाढ़ की विभीषिका से निजात मिलने के साथ सिंचाई के नये स्रोत विकसित किए जा सकते हैं तथा बड़े पैमाने पर डूब क्षेत्रों व चाप चौर की जमीन को खेती योग्य बनाया जा सकता है।
इनसे इतर नदियों का जोड़ इस जिले में जल परिवहन जैसी विलुप्त होती विरासत को भी संरक्षित कर सकता है। विदित हो कि अररिया जिले में गुजरे दिनों के दौरान जल परिवहन कमर्शियल ट्रांसपोर्ट सिस्टम का अभिन्न अंग था। गल्ला, लकड़ी, मिट्टी के बरतन, मछली, जूट सहित आवागमन के लिए भी जल परिवहन एक खूबसूरत साधन था। लेकिन नदियों पर ध्यान नहीं दिए जाने के कारण यह शानदार विरासत विलुप्त होती चली गई। नदी जोड़ का प्रोजेक्ट इसे दोबारा जिंदा कर सकता है।

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