Monday, April 18, 2011

ये तो कचरे हैं, कचरों का क्या?


अररिया : अगर आपने चंडीगढ़ का रॉक गार्डन देखा है तो कचरों से बनी कलाकृतियों की अहमियत को भलीभांति समझते होंगे। अब तो बायो कचरों से बिजली पैदा करने की भी बात हो रही है। लेकिन अररिया जैसे शहर में कचरे सौंदर्य व सुविधा के माध्यम नहीं, बल्कि विनाश का कारक बन रहे हैं। कूड़ों की भरमार, प्लास्टिक के थैलों से जाम नाले, कचरों के निष्पादन की कोई व्यवस्था नहीं, जन प्रतिनिधियों की उदासीनता व अधिकारियों की निष्क्रियता.., ऐसा प्रतीत होता है कि आने वाले दिनों में शहर का कचरा गंभीर संकट का कारण बनेगा।
इधर, नप के कार्यपालक पदाधिकारी अनिल कुमार का कहना है कि नगर परिषद क्षेत्र में आबादी लगातार बढ़ रही है और कूड़े का क्वांटम भी बड़ रहा है। शहर में पचास हजार से अधिक लोग प्रति दिन आते हैं, उनके द्वारा भी कचरे का उत्सर्जन होता है। नप के पास संसाधनों की भी कमी है। उन्होंने बताया कि कचरा संग्रहण व प्रोसेसिंग के लिये जमीन चिंहित कर ली गयी है। इस मद में साठ लाख रुपये भी उपलब्ध हैं। जल्द ही केंद्र के निर्माण की दिशा में कार्य किया जायेगा।
जानकारों की मानें तो शहर में रहने वाले लगभग बीस हजार परिवार प्रतिदिन पचीस क्विंटल कचरा उत्पन्न करते हैं। लेकिन इनके निष्पादन की सरकारी स्तर पर कोई मुकम्मल व्यवस्था नहीं है। कचरा संग्रहण केंद्र के लिये सरकार द्वारा आवंटित साठ लाख रुपयों की राशि बेकार पड़ी है।
गुरु नानक देव जी के पुत्र बाबा पृथ्वीचंद से जुड़े स्थल बाबाजी कुटिया को कूड़ा डंपिंग स्थल बना दिया गया है। शहर में कूड़ा निष्पादन के नाम पर यही होता है कि जहां तहां गड्ढों में उन्हें यू ही छोड़ दिया जाता है। बाबाजी कुटिया के अलावा बर्मा सेल, जागीर टोला, हरियाली मार्केट सहित कई अन्य स्थानों पर कूड़ा डंपिंग स्थल। सड़ांध ऐसी कि गुजरना भी मुश्किल, लेकिन देखने वाला कोई नहीं।
कचरा निष्पादन की गड़बड़ी घर से ही शुरू हो जाती है। बड़े शहरों की तरह यहां कचरा निष्पादन को ले कोई ठोस नीति नहीं। लोग किचन व घर का कूड़ा सड़कों पर ही फेंकते हैं, यहां तक कि शौच भी सड़क किनारे ही करते हैं। और भी बहुत बात..।
वार्ड पार्षद रेशम लाल पासवान, शिव कुमार दास, संजय कुमार उर्फ पिंकू यादव आदि की मानें तो शहर में कचरों के निष्पादन के लिये समुचित व्यवस्था होनी चाहिये। अगर भविष्य को ध्यान में रख कर इस संबंध में ठोस नीति नहीं बनायी जाती है तो परिणाम भयावह हो सकते हैं। पहले तो यह तय हो कि कचरा कहा डंप हो। वहीं प्लास्टिक बैग्स के प्रयोग पर भी असरदार ढंग से प्रतिबंध लगना चाहिये।
जानकारों के अनुसार नगर परिषद की ओर से कुछ साल पहले जगह जगह कचरा पेटिया (कूड़ादान)लगायी गयी थीं, लेकिन वे अब समाप्त हो गयी हैं।

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