Wednesday, December 1, 2010

अररिया फिर चला एंटी करंट

अररिया, जाप्र: विगत लगभग पचास सालों से अररिया का चुनावी जनादेश कभी भी सूबे की सरकार के समर्थन में नहीं रहा। 2010 का जनादेश इस धारणा का ताजा उदाहरण है। यदि कभी सरकारी दल का कोई जीता भी तो कार्यकाल पांच साल का नहीं रहा।
सन 1962 के चुनाव में जनसंघ समर्थित बालकृष्ण झा यहां से जीते थे, चुनाव बाद सरकार कांग्रेस की बनी। फिर 1967 व 69 के मध्यावधि चुनाव में कंग्रेस के शीतल प्रसाद गुप्ता जीते। इस दौरान बिहार में संविद सरकारों की होड़ लगी रही। सन 72 के चुनाव में समाजवादी डा. आजम को जीत मिली तो सूबे में सरकार कांग्रेस की बनी। आपातकाल के बाद 77 के चुनाव में अररिया से कांग्रेस के श्रीदेव झा जीते। पटना में जनता पार्टी की सरकार बनी। अस्सी में जब कांग्रेस की सरकार बनी तो यहां से लोकदल के तस्लीमुद्दीन को जीत मिली थी। 1985 में कांग्रेस के हलीम उद्दीन की जीत के अपवाद को छोड़ दें तो नब्बे में यहां से इंसाफ पार्टी के टिकट पर विनोद कुमार राय को जीत हासिल हुई। इस साल पटना में लालू प्रसाद के नेतृत्व में सरकार बनी। 1995 के चुनाव में बिहार पीपुल्स पार्टी के विजय कुमार मंडल जीते। अगले चुनाव में भी निर्दलीय के रूप में वे ही जीते। दानों बार पटना में जद व राजद की सरकार रही। सन 2005 के प्रथम चुनाव में भाजपा के प्रदीप कुमार सिंह जीते। इस बार किसी सरकार का गठन नहीं हो पाया। सूबे में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। इसी साल के द्वितीय चुनाव में फिर भाजपा के प्रदीप कुमार सिंह ही जीते, लेकिन उन्होंने लोक सभा का चुनाव लड़ कर उसमें जीत हासिल कर ली। उप चुनाव में लोजपा के विजय मंडल को जीत मिल और अब 2010 के चुनाव में लोजपा के ही जाकिर हुसैन खां को जीत मिली है। जबकि प्रदेश में राजग की जीत का जलवा नुमाया है।

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