Thursday, December 2, 2010

रेणु के मैला आंचल में चली आम जन की लहर

अररिया, जागरण प्रतिनिधि: कह दो गांव गांव में, अब के चुनाव में वोट देंगे नाव में..। यह नारा 38 साल पुराना है। इसे रेणु जी ने दिया था। लेकिन तब नाव में वोट नहीं पड़ा और अमर कथा शिल्पी फणीश्वरनाथ रेणु बुरी तरह चुनाव हार गये।
पूरी दुनिया की नजरें इस चुनाव पर थीं। बीबीसी से मार्क टली स्वयं रेणु के राजनीति प्रवेश को कवर कर रहे थे कि एक साहित्यकार चुनाव जीतता है या फिर चलताऊ राजनीति के लोग विजयी होकर पटना पहुंचते हैं।
रेणु ने जिस आम आदमी से वोट की याचना की थी, तब उसे वोट गिराने ही कौन देता था। मैला आंचल लिख कर रेणु ने भले ही उपन्यास का जनतांत्रीकरण कर दिया हो, जिस लक्ष्य समूह को वे जगाना चाहते थे, उस वक्त वह जग नहीं पाया और नतीजा उनकी हार के रूप में सामने आया।
रेणु दिवंगत हो गये, लेकिन आम जन के बीच जागरुकता व सामाजिक बराबरी का जो बीज उन्होंने बोया था वह सन 2010 के जनादेश में हरे भरे वृक्ष की तरह दिखा। इस वृक्ष की भरपूर छांव उनके पुत्र पद्म पराग वेणु व अन्य उम्मीदवारों को मिली।
इस दौरान आम जन को जगाने की तमाम सच्ची झूठी कोशिशें होती रहीं। विगत पांच साल के दौरान सरकारी व गैर सरकारी प्रयासों से जब आम जन जगा तो जन सैलाब उमड़ पड़ा। विकास के एजेंडे ने जात पात की राजनीति को दूर उठा कर फेंक दिया।
जरा चुनावी रेणु के मैला आंचल के चुनावी नतीजों पर गौर कीजिये।
फारबिसगंज से रेणु के पुत्र सह भाजपा प्रत्याशी वेणु ने रिकार्ड तोड़ जीत हासिल की। वे लोजपा के मायानंद ठाकुर से 26824 मतों से आगे रहे। रानीगंज से भी भाजपा के परमानंद ऋषिदेव ने भारी जीत हासिल की। वे लगभग साढे़ तेईस हजार मतों से विजयी हुए। इन क्षेत्रों में जीत का इतना विशाल अंतर कभी नहीं रहा था। विगत चुनाव में जोकीहाट से पचीस हजार मतों से हारने वाले सरफराज इस बार जदयु प्रत्याशी के रूप में उससे भी अधिक अंतर से जीते।
चुनाव प्रचार के दौरान लहर नजर नहीं आती थी। लेकिन देखने वालों ने सिमराहा में नीतीश की सभा में इस लहर को देख लिया था। यह आम आदमी की लहर थी, जिसे जगाने की कोशिश रेणु ने की थी और विगत पांच साल में नीतीश भी इसी प्रयास में लगे रहे। यह लहर हाइ फाई नहीं थी और प्रकट तौर पर एग्रेसिव भी नहीं, लेकिन जब आम जन जग जाता है तो उसकी लहर में भला कौन स्थिर रह सकता है।

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