अररिया : अररिया को जिले का दर्जा मिले दो दशक से अधिक समय बीत गए, परंतु आज तक यहां जिला एवं सत्र न्यायालय की स्थापना नही हो पाया। जबकि राज्य सरकार ने यहां इस कोर्ट की स्थापना के लिए अपनी अनुमति दे दी है। यहां तक कि इस कोर्ट के लिये पदों का सृजन समेत इसमें खर्च होने वाले लाखो राशि आवंटित भी कर दी। बावजूद प्रशासन व राजनेताओं की उदासीनता के कारण यहां जजशिप कोर्ट मूर्त्तरूप नही ले पाया है। इस संबंध में जिला बार एसोसिएशन अररिया के महासचिव अमर कुमार ने सरकारी कार्य व्यवस्था को मूल रूप से जिम्मेदार ठहराया है। बिहार सरकार ने अररिया में डीजे कोर्ट की स्थापना के लिये अपनी स्वीकृति दे दी। जिला मुख्यालय के अधिवक्ताओं ने इस ओर अपनी सार्थक भूमिका निभाया, जहां उन्हें प्रबुद्धजनों का भी सहयोग मिला। जिसके बाद बिहार सरकार के मंत्री परिषद द्वारा 22 जुलाई 08 को वर्ग तीन व वर्ग चार के कुल चौदह पदों का सृजन कर दिया। इन पदों की स्वीकृति के बाद इस मद में लगने वाले 14 लाख 20 हजार 342 रुपये की स्वीकृति भी मिल गयी तथा उक्त आवंटित राशि अररिया कोषागार में भी पहुंचा। परंतु अररिया में उक्त कोर्ट का कार्यान्वयन नही होने से यह राशि प्रत्येक वर्ष वापस हो रही है। फिर भी अररिया में एक अदद जिला एवं सत्र न्यायाधीश कोर्ट की स्थापना नही हो पाया है। जबकि पूर्णिया के डीजे की अध्यक्षता में अररिया कोर्ट में हुई कई बार मानिटरिंग सेल की बैठक में यह चर्चा छायी रही।
जबकि करीब 21 लाख की आबादी वाले नेपाल सीमावर्ती अररिया जिला काफी संवेदनशील रहा है। कई संगीन अपराधिक मामले जिले में घटती रहती है तो सिविल कोर्ट अररिया में तीस हजार से अधिक मामले निष्पादन के लिए लंबित है। उधर एनडीपीएस एसटी/एससी एक्ट, फैमली कोर्ट के मामलों का संज्ञान पूर्णिया जजशीप में अब भी होता है। वही स्थानीय कोर्ट में चलने वाले सेसन मामले पूर्णिया से यहां ट्रायल के लिये भेजे जाते हैं। जबकि जिले वासी को करीब 150 किलोमीटर की आवाजाही कर पूर्णिया जाना बाध्यता है।
0 comments:
Post a Comment