Tuesday, May 8, 2012

सड़कों पर नाच रही मौत


अररिया : सपनीली सड़कों पर बेलगाम दौड़ते वाहन लगातार हादसों की सौगात बांट रहे हैं। पिछले साल कातिल वाहनों ने 88 लोगों की बलि ली तो इस साल के पहले चार महीनों में ही आंकड़ा बीस पार कर चुका है।
आंकड़े बताते हैं कि पिछले साल तीन सौ छोटी बड़ी सड़क दुर्घटनाएं हुई। इनमें 88 लोगों की असमय मौत हो गयी। तीन सौ से अधिक लोग जख्मी हो गये।
सड़क दुर्घटनाओं के कारणों पर गौर करें तो तेज व अनियंत्रित रफ्तार व ट्रैफिक नियमों के प्रति जागरूकता की कमी मुख्य वजह के रूप में सामने आती हैं। कारण और भी हैं तथा जिम्मेदारी कहीं न कहीं प्रशासन पर भी आती है।
इस जिले में सड़कें पहले से काफी बेहतर हुई हैं। जिले में दो दशक पहले की मात्र 183 किमी सड़कों की तुलना में अब लगभग ढाई हजार किमी अच्छी, पक्की व फेयरवेदर सड़कें हैं। ईस्ट वेस्ट कारीडोर की खूबसूरत फोरलेन सड़क भी इसी जिले से गुजरती हैं। इसके अलावा तीन चार स्टेट हाइवे व कई मेजर डिस्ट्रिक्ट रोड का निर्माण भी हुआ है। वहीं, प्रधनमंत्री ग्राम्य सड़क योजना के तहत गांव-गांव तक ब्लैक टाप सड़कें पहुंच रही हैं। इन सुंदर सड़कों के साथ धीमे व सुरक्षित आवागमन का बंधन भी टूटा है। फिल्मों के प्रभाव में नौजवान अब अस्सी से नीचे चलते ही नहीं। ऐसा प्रतीत होता है कि लोग बैलगाड़ी युग से एकदम जेट युग में ही प्रवेश करना चाहते हैं। बीच की शायद कोई गुंजाइश नहीं। लेकिन इस अच्छाई के साथ दुर्घटनाओं का अभिशाप भी चिंतनीय रूप से असर दिखा रहा है।
ऐसे लोग वाहन चला रहे हैं, जिन्हें इसकी कभी कोई ट्रेनिंग नहीं मिली।
पुलिस कप्तान शिवदीप लांडे द्वारा करवाये गए एक अध्ययन के अनुसार विगत साल नौसिखिया वाहन चालकों ने 20 लोगों की जान ले ली। वहीं, कातिल रफ्तार के साथ मौत के मुंह में समाने वालों में भी सबसे अधिक संख्या युवाओं की ही रही। मरने वालों में डेढ़ दर्जन लोग बिल्कुल नौजवान थे।
आंकड़े बताते हैं कि विगत साल जेट की रफ्तार में सड़कों पर दौड़ने वाले ट्रैक्टर चालकों ने सर्वाधिक मौतें बांटी। वहीं दुर्घटनाओं के मामले में सिर से पैर तक लदे टेम्पों सबसे आगे रहे।
ट्रकों से टकरा कर 14 तथा कार हादसों में 19 लोग मरे।
पुलिस कप्तान द्वारा करवाये गए अध्ययन से पता चलता है कि हादसों के पीछे तेज रफ्तार व ट्रैफिक नियमों के प्रति जागरूकता की कमी प्रमुख कारण हैं। पिछले साल सबसे अधिक हादसे राजमार्गो पर हुए तथा सर्वाधिक मौतें भी इन्हीं सड़कों पर हुई। एनएच पर 24 तथा एसएच पर 25 लोगों ने जान गंवायी।
कातिल रफ्तार का शाप हर जगह समान रूप से दिखता है। मौत बांटने में ग्रामीण सड़कें भी पीछे नहीं रही। गांवों की सड़कों पर दुर्घटना का शिकार हो कर 33 लोग मरे।
श्री लांडे की स्टडी बताती है कि सड़क दुर्घटना में अराजक माइंडसेट भी एक खास वजह है। जब मौसम अच्छा रहता है तो हादसे अधिक होते हैं। बारिश के मौसम में या तेज धूप में लोग संभल कर गाड़ी चलाते हैं, जबकि सुहाने मौसम में रफ्तार का रोमांच शायद दिमाग की तुलना में दिल को अधिक बहकाता है। आंकड़े बताते हैं कि आधे से अधिक सड़क हादसे तब हुए तब मौसम बेहद सुहाना था। सर्वाधिक मौतें सुहाने मौसम में हुए हादसों में ही हुई। इन हादसों में 51 लोग मरे तथा 54 व्यक्ति गंभीर रूप से घायल हुए।

0 comments:

Post a Comment