अररिया : तस्करी के बाजार में सुपारी नरम और सेब गरम हो गया है। नेपाल और भारत में सेब की कीमत में तीन गुने अंतर के कारण इसकी तस्करी चरम पर है। नेपाल सीमा से प्रतिदिन एक हजार से बारह सौ क्विंटल सेब रेलवे के माध्यम से देश के विभिन्न हिस्सों में पहुंच रहा है। तस्करी के इस खेल में सैंकड़ों छोटे-बड़े कारोबारी लगे हैं।
गुटखा पर बिहार में प्रतिबंध और सीमा के दोनों तरफ चौकसी के कारण सुपारी की तस्करी काफी कम हो गई है। कभी हजारों क्विंटल का यह कारोबार अब किलोग्राम में सिमट गया है। लेकिन तस्करों के लिए चाइनीज सेब वरदान साबित हो रहा है। कम लागत और बड़ा बाजार इसकी तस्करी में चार चांद लगा रहा है।
नेपाल सीमा के आसपास है गोदाम : सूत्र बताते हैं कि तस्करों द्वारा नेपाल सीमा के आसपास बने गोदामों में इसका स्टाक किया जाता है। फिर कूरियर के माध्यम से छोटी-छोटी टोकरियों और कार्टून में सीमा के पार लाया जाता है। इसके बाद रेल के माध्यम से यह देश के विभिन्न शहरों में पहुंचाया जाता है। खासकर, सीमांचल एक्सप्रेस तस्करों के लिए काफी उपयोगी साबित हो रहा है। प्रतिदिन यात्रा करने वाले यात्रियों की मानें तो इस रेल गाड़ी के एसी और स्लीपर बोगी में यह आराम से देश के अलग-अलग हिस्सों में सुरक्षित पहुंच जाता है।
सीमा पर करते है बढ़ जाती है कीमत : बताते हैं कि सीमा पर करते ही इस सेब की कीमत तीन गुनी बढ़ जाती है। जोगबनी सीमा पार यह सेब 50 से 55 रुपये किलो उपलब्ध होता है। जबकि सीमा पार करते ही यह 150 से 165 रुपये प्रति किलोग्राम हो जाता है। तीन गुनी कीमत और कम रिस्क को देखते हुए तस्करों का पूरा फोकस फिलहाल चाइनीज सेब बना हुआ है।
तस्करी में महिलाएं व बच्चों का इस्तेमाल : रेल और सीमा दोनों ही जगहों पर सेब की तस्करी में महिलाओं और बच्चों को कूरियर के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। सीमा पार कराने के एवज में कूरियर को प्रति कार्टून या टोकरी पचास रुपये मिल जाते हैं। समय-समय पर सीमांचल एक्सप्रेस में हुई कस्टम विभाग की छापेमारी और जब्ती तस्करी की पुष्टि करती है।
-------------
कोट :-
''सेब की तस्करी हो रही है परंतु यह संगठित रूप से नहीं हो रही है। समय-समय पर एसएसबी द्वारा तस्करी के सेब पकड़े जाते रहे हैं।''
के. रंजीत, कमांडेंट 28वीं बटालियन
0 comments:
Post a Comment