अररिया : जीवन को बचाना है तो जल का संरक्षण बेहद जरूरी है। पेट्रोल के बगैर आदमी जिंदा रह सकता है, लेकिन पानी के बिना जीवन की कल्पना ही बेकार है। यह एक आम सोच है जो अररिया जिले की एक बड़ी आबादी को जल स्रोतों के संरक्षण के लिए प्रेरित करती रही है। परती परिकथा की कथा भूमि पर जल ग्रामीण विमर्श का एक प्रमुख अंग है और गांव के लोग बांध, पायलट चैनल, छिलका, छहर, पाइन, चहबच्चा, चिरान, जलकर आदि के माध्यम से पानी को बचाने के लिए कार्य करते रहते हैं। यह पानी उनके खेतों में सिंचाई तथा मछली पालन के लिए काम में आता है। यह बात अलग है कि इस तरह पानी बचा कर वे भूगर्भ जल की रिचार्जिग में बड़ा योगदान करते हैं। लेकिन विगत तीन दशक से हालात में परिवर्तन आया है। ग्रामीण स्तर पर जल संरक्षण कार्य को सरकार की डयूटी समझ कर लोग इससे उदासीन हो रहे हैं।
बाढ़ के दिनों में पानी के प्रबंधन के कार्य ग्रामीणों के बीच चर्चा का प्रमुख विषय होता आया है और इस संबंध में आम सहमति बना कर पानी के बहाव की दिशा तय की जाती है, ताकि जल प्रवाह से धान की अच्छी पैदावार हासिल की जा सके। बांध या अन्य निर्माण में सबका योगदान होता है और सब कुछ श्रमदान के माध्यम से होता है।
लेकिन इस प्रक्रिया में सरकारी तंत्र के प्रवेश से स्थिति खराब हुई है। ग्रामीण नेतृत्व उदासीन हो गया है और निर्माण प्रक्रिया में भ्रष्टाचार का प्रवेश मजबूती के साथ हुआ है। नतीजा: कार्य में बाधा, आधाअधूरा निर्माण और पानी की बरबादी।
जिलाधिकारी एम. सरवणन मानते हैं कि अररिया जिले में अंडरग्राउंड वाटर भरपूर है, साथ ही बारिश के दिनों में इलाके से खरबों घनमीटर पानी बह कर समुद्र की ओर चला जाता है। इस पानी को बचाना होगा।
उन्होंने पानी को बचाने के लिए जिले में 218 तालाबों के निर्माण की महती योजना को कार्य रूप दिया है। जिले की हर पंचायत में नरेगा के तहत दो दो तालाब बनाये जा रहे हैं। वे मानते हैं कि इससे अंडरग्राउंड वाटर का स्टाक समृद्ध होगा और पानी से जुड़े मछली पालन, सिंचाई, बतख पालन आदि कार्यो को भी अंजाम दिया जा सकेगा।
उन्होंने कहा कि अगर पानी को बचाना है तो तालाब निर्माण और पेड़ लगाना सबसे बढि़या उपाय हैं। जिला वासियों को इस पर अमल करना चाहिये।
कुर्साकाटा प्रखंड के रहटमीना ग्राम निवासी होमगार्ड जवान सह जल कार्यकर्ता वीरेंद्र नाथ मिश्रा पानी बचाने व नदी की मनमानी रोकने के लिए दो दशक से कार्य कर रहे हैं। उनका मानना है कि पानी को बेकार बह कर समुद्र में जाने से रोकना होगा। वे मानते हैं कि जल को एक संपदा के रूप में विकसित करने से हालत काफी हद तक सुधर सकती है।
श्री मिश्रा ने अपने पंचायत में लोहंदरा व भलुआ नदियों की मनमानी रोकने के लिए जागरूकता फैलाने के अलावा सरकारी तंत्र को भी धरातल पर पहुंचने के लिए विवश किया है। उनके प्रयास से सरकार ने महानंदा बेसिन परियोजना के तहत कुर्साकाटा व अररिया प्रखंडों में नदी किनारे तटबंध आदि के निर्माण को स्वीकृति प्रदान की है।
जल स्रोतों की दुर्दशा के कारण जिले की नदियां क्षीण होने लगी हैं। बीएन मंडल विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर भूगोल विभाग के अध्यक्ष डा. लाल मोहन झा की मानें तो पहले परमान व बकरा का पानी बेहद स्वच्छ होता था। यहां तक कि कई गांवों में लोग इसे पीने के काम में भी लाते थे। लेकिन आज हिमालय में वनों की कटाई तथा नदी जल के प्रदूषण ने स्थिति बिगाड़ दी है। अब तो लोग इस पानी में स्नान करने से भी परहेज करते हैं। नेपाली फैक्ट्रियों के कचरे से बकरा का पानी अक्सर लाल हो जाता है। लेकिन इसे रोकने की कोई पहल नहीं होती। इससे हालत तो और खराब ही होगी।
बाक्स के लिए
फोटो- 29 एआरआर 3
कैप्शन- एसपी शिवदीप लांडे
जीवन बचाना है तो पानी बचाईये: शिवदीप लांडे
अररिया, जाप्र: अररिया के एसपी शिवदीप लांडे का पैतृक गांव पानी की कमी से अक्सर जूझता रहता है। लिहाजा वहां के लोग पानी के प्रति बेहद संवेदनशील व जागरूक हैं। श्री लांडे का मानना है कि जीवन की रक्षा के लिए जल का सरंक्षण व जल की स्वच्छता बेहद जरूरी है। क्योंकि स्वच्छ जल से मनुष्य की आयु बढ़ती है। इसके लिए पेड़ लगाना तथा पानी के भंडार विकसित करना आवश्यक है।
उन्होंने कहा कि अररिया पानी के मामले में बेहद भाग्यशाली है, लेकिन इसे बचाने के लिए जागरूकता की कमी है। यहां के लोग चौकस नहीं रहेंगे तो हालात बिगड़ेंगे और आने वाले दिनों में दिक्कत होगी।
उन्होंने जिला वासियों से जल स्रोतों की रक्षा करने तथा जल भंडार को समृद्ध करने के लिए वृक्षारोपण की अपील की।
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