Friday, June 1, 2012

मैला ही रह गया मैला आंचल का पानी


अररिया : मीठे पानी के भंडार पर उपला रहे 'मैला आंचल' की जमीन पर शुद्ध पानी का आज भी अकाल है। बारिश के दिनों में पानी की अधिकता व अन्य दिनों में जल संकट। खेतों को सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी नहीं, गांवों में पीने को स्वच्छ जल नहीं इलाके की पहचान बनी है। यहां तक कि जिले के सारे स्कूलों में आज तक शुद्ध पेयजल की व्यवस्था भी नहीं की जा सकी है।
दैनिक जागरण द्वारा पानी को लेकर चले विगत अभियान के बाद जिला प्रशासन ने जल संरक्षण के उपायों पर अमल प्रारंभ किया है। जिले में मनरेगा के तहत 436 नये तालाबों के निर्माण का कार्य किया जा रहा है। इस कार्य की परिणति क्या होती है, यह तो बाद में पता चलेगा, लेकिन इतना तय है कि पानी अब सामाजिक विमर्श का केंद्र बन चुका है। इसको लेकर आम जन में चर्चा हो रही है और लोग पानी बचाने, स्वच्छ पेयजल, जल संरक्षण आदि विषयों पर कांसस हुए हैं।
पेयजल के उपायों पर गौर करें तो प्रशासन अब तक ग्रामीण आबादी को स्वच्छ पानी मुहैया नहीं करवा पाया है। करोड़ों की लागत से पूर्व में चली कोसी अमृत पेयजल योजना पूरी तरह फ्लाप रही। उसके बाद ग्रामीण चापाकलों में आयरन रिमूवल प्लांट लगाने की योजना भी अंजाम तक नहीं पहुंच पायी है। जानकारों की मानें तो एनजीओ के हत्थे सौंपी गयी इस योजना का हश्र भी बुरा ही होने वाला है। पीएचइडी विभाग अभी तक सारे स्कूलों में पेयजल मुहैया नहीं करवा पाया है। जिले के 182 स्कूलों में ट्यूब वेल नहीं है। स्वच्छ पेयजल के लिए टेरा फिल्टर लगाने के लिए खर्च की गई सवा करोड़ की राशि भी पानी में ही चली गयी।
ग्रामीण आबादी को पेयजल के लिए पाइप जलापूर्ति योजनाओं का भी बुरा हाल है। विगत सालों में चलायी गई पेयजल योजनाएं तो कबाड़ा हो ही गयी, चालू साल में एनडब्लुआरएस के तहत 64 योजनाओं के लक्ष्य में मात्र 20 की उपलब्धि हो पायी। गीतवास, बसैटी, भरगामा, सिकटी, नरपतगंज, अररिया, अररिया आरएस, फारबिसगंज, जोगबनी, पलासी आदि स्थानों पर बने जल मीनार भी शोभा की वस्तु बनकर रह गये हैं।
वहीं, खेतों तक सिंचाई को लेकर पानी पहुंचाने के मामले में भी गतिरोध कायम है। सरकार ने भूजल सिंचाई योजना के तहत किसानों को बैंकों के माध्यम से आर्थिक सहायता पहुंचाने की योजना चला रखी है। लेकिन आंकड़े बताते हें कि बैंक इस दिशा में पूरी तरह उदासीन हैं।
लघु सिंचाई विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक इस योजना के अंतर्गत आर्थिक सहायता के लिए 1668 आवेदन बैंकों को भेजे गये, लेकिन मात्र 168 को वित्तीय सहायता मिल पायी। आखिर किसान अपने खेतों की सिंचाई किस प्रकार करेगा? नहरें फेल हैं, पंप सेट खरीदने के लिए पैसा नहीं है, पानी बचाने को उपाय नहीं होते।
2008 की महा बाढ़ में ध्वस्त कोसी नहरों का पुर्ननिर्माण मार्च तक पूरा कर लिया जाना था, लेकिन अब तक इसे पूरा नहीं किया गया है। लगे हाथ सरकारी नलकूपों की हालत भी देख ही लीजिए। लगाए नलकूप 30, लेकिन कार्यरत केवल दो। क्या किसानों के साथ इससे भद्दा और भी कोई मजाक हो सकता है? नदियों से भरे इस इलाके में उद्वह सिंचाई योजना खेतों तक पानी पहुंचाने का बड़ा साधन थी, लेकिन तकरीबन एक दर्जन लिफ्ट इरीगेशन स्कीम में से आज की तारीख में एक भी कार्यरत नहीं है।

0 comments:

Post a Comment