Monday, May 21, 2012

होमगार्ड जवानों को भर पेट भोजन नसीब नहीं


अररिया, : यह अजीब लगता है। उन पर विधि व्यवस्था बनाये रखने का महत्वपूर्ण दायित्व होता है, फिर भी उनकी उपेक्षा की जाती है। वे सबकी रक्षा करते हैं, लेकिन स्वयं असुरक्षित रहते हैं। बात चुनाव व दीगर मौकों पर ला एंड आर्डर ड्यूटी में लगाये जाने वाले होम गार्ड जवानों की हो रही है। ताजा नगर निकाय चुनावों के दौरान उनके साथ अक्सर होने वाला सौतेला व्यवहार एक बार फिर देखने को आया।
पांच दिन के लिए भोजन के नाम पर मात्र एक सौ रुपये और यात्रा भत्ता के नाम पर बीस रुपये, कोई बताये कि क्या यह पर्याप्त है? गृह रक्षा वाहिनी संघ के जिलाध्यक्ष अभय कुमार झा बबलू की मानें तो चुनाव व अन्य ड्यूटी पर होमगार्डो को यही भुगतान होता है। इतना ही नहीं, उन्हें ड्यूटी के एवज में प्रतिदिन तीन सौ रुपयों का ही भुगतान किया जाता है।
इस बार के नगर निकाय चुनाव में कुल 11 सौ होमगार्ड जवानों को ड्यूटी पर लगाया गया। उन्होंने अररिया, जोगबनी व फारबिसगंज शहर के विभिन्न स्थानों पर स्टेटिक व पेट्रोलिंग बल के रूप में कार्य किया। चुनाव घटना रहित संपन्न हो गया और अधिकतर जवान गरीबी व मजदूरी की दुनिया में सर खपाने के लिए एक बार फिर अपने घरों को वापस लौट गये।
होमगार्ड जवानों को पांच दिन के लिए भोजन के नाम पर मात्र सौ रुपयों का भुगतान यह कह कर किया जाता है कि इससे आप ड्राय राशन खरीद लीजिए। यह ड्राय राशन का चक्कर क्या है? चुनाव कार्य में लगे लोगों के लिए तो भोजन का मेस चलता है। लेकिन होमगार्ड के जवान चूड़ा मूढ़ी फांक कर पेट भरते हैं और चुनाव में ड्यूटी करने के लिए कंधे पर बंदूक थाम निकल पड़ते हैं। वहीं, अगर केंद्रीय अ‌र्द्धसैनिक बल के जवान आते हैं तो उनके लिए हर तरह की सुविधा मुहैया करवायी जाती है। उनके लिए बिजली पंखे लगते हैं, जेनरेटर का प्रावधान होता है तथा आने जाने के लिए डीलक्स व एसी कोच उपलब्ध करवाया जाता है। फिर होमगार्ड जवानों के साथ ऐसा व्यवहार क्यों?
नगर निकाय चुनाव के दौरान अधिकतर होमगार्ड जवान चूड़ा मूढ़ी व सत्तू से पेट भरते देखे गये। कुछ ने तो पेड़ के नीचे ईट जोड़ कर चूल्हा बनाया और भोजन पकाने की व्यवस्था की। इतना ही नहीं, होमगार्डो के ठहराव के लिए भी समुचित व्यवस्था नहीं की गयी थी।
होमगार्ड संघ के जिलाध्यक्ष श्री झा की मानें तो समान कार्य करने के बावजूद होमगार्ड जवानों को कम भुगतान होता है। इतना ही नहीं, उन्हें सालो भर रोजगार की गारंटी भी नहीं होती। कुछ ही लोगों को बैंक या अन्य संस्थानों में स्थायी ड्यूटी मिल पाती है। यह अन्याय है।

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