अररिया : वृक्ष पूजा का सदियों पुराना पर्व वट सावित्री रविवार को संपूर्ण जिले में पारंपरिक उल्लास व श्रद्धा के साथ मनाया गया। इस अवसर पर महिलाओं ने वट वृक्ष की पूजा की तथा पेड़ के चारो ओर रक्षा सूत्र बांध कर अपने पति व बच्चों की सलामती का वरदान मांगा।
वट सावित्री को लेकर महिलाओं ने उपवास भी रखा। सुबह स्नान के बाद रंग बिरंगे कपड़ों में फल फूल व मिठाईयों के साथ महिलाएं निकट के वट वृक्षों तक पहुंची और विधि पूर्वक पेड़ की पूजा की। .. हे वट बाबा, जिस तरह आपकी जटाएं चहुंओर फैली हुई हैं, उसी तरह हमारा वंश भी फले फूले।
वृक्ष पूजा के बाद महिलाओं ने घर लौटकर अपने अपने पति के चरण स्पर्श किए तथा पंखा झलने की रस्म निभाई। मौके पर फल व मिठाईयों का प्रसाद भी बांटा गया।
वट सावित्री को लेकर जिले भर में धूम मची रही। तकरीबन सारी विवाहिताएं पूजा के सजे थालों के साथ वट वृक्ष के पास आती-जाती दिखाई दी। इधर, जानकारों के अनुसार वट सावित्री के उपलक्ष्य में महिलाओं द्वारा वृक्ष को शिव का रूप मानकर उनकी पूजा अर्चना की जाती है।
जोकीहाट से निप्र के अनुसार प्रखंड क्षेत्र में रविवार को विवाहित महिलाओं ने अपने पति के दीर्घायु होने के लिए व्रत रख कर वट वृक्ष की श्रद्धा व उल्लास के साथ पूजा अर्चना की एवं धागे बांधे। जोकीहाट बाजार, जहानपुर, सिमरिया, महलगांव आदि गांवों में वट सावित्री का पर्व मनाया गया।
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वट सावित्री में निहित पर्यावरण संरक्षण का संदेश
अररिया, जाप्र: गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि वृक्षाणां अश्वत्थोहम ..! अर्थात वृक्षों में अश्वत्थ (पीपल) का वृक्ष मैं ही हूं। इसी तरह प्राचीन ग्रंथों में कई अन्य पेड़ों को ईश्वर से जोड़ दिया गया है, ताकि लोग उनकी रक्षा करें। इसके मुताबिक वट वृक्ष शिव, पलास का वृक्ष सृष्टिकर्ता ब्रह्मा तथा तुलसी का पौधा विष्णु का रूप है। इसलिए इन्हें पूजा जाता है।
प्राच्य विद्या के जानकारों का मानना है कि वृक्षों को ईश्वर से जोड़ने के पीछे उनकी रक्षा व पर्यावरण संरक्षण का संदेश निहित है। वहीं, आधुनिक विज्ञान के अनुसार ऊपर वर्णित चारो पेड़ ऐसे हैं, जिनसे दुनियां को चौबीस घंटे आक्सीजन प्राप्त होता है।
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