Sunday, June 3, 2012

अररिया के गांवों में अब भी अंधेरे का राज


अररिया : कहां तो तय था चरागां हर घर के लिए यहां रोशनी मयस्सर नहीं शहर के लिए ..। अररिया के हर घर में रोशनी पहुंचाने के दावे पर ये पंक्तियां पूरी तरह फिट बैठती हैं। भ्रष्टाचार व विभागीय निकम्मेपन के कारण अररिया के गांवों में विद्युतीकरण की योजना फ्लाप हो गयी है।
इस जिले में ग्रामीण विद्युतीकरण के दो प्रयास हुए। पहला प्रयास भ्रष्ट अधिकारियों, तरकट्टों व विभागीय उपेक्षा की भेंट चढ़ गया। विडंबना है कि गांवों को रोशन करने का दूसरा प्रयास भी अब तक बेकार ही साबित हुआ है। इस प्रयास को जोरदार सरकारी धक्के की जरूरत है। इससे पहले अस्सी के दशक में ग्रामीण विद्युतीकरण का प्रयास हुआ था। पोल गड़े, तार लगे, बिजली भी पहुंची लेकिन लंगड़ाती हुई। क्योंकि भ्रष्टाचार के घुन से लबरेज विभागीय लोगों ने गांवों में जले हुए व खराब ट्रांसफार्मर लगाकर हर गांव को रोशन डिक्लेयर कर दिया। कुछ ऐसे गांव भी बिजलीकृत घोषित किए गये जिनका अस्तित्व ही नहीं था। कई गांवों में काम नहीं हुआ पर उन्हें बिजलीकृत घोषित कर दिया गया। लेकिन सबसे बढ़कर यह कि विद्युतीकरण के बाद गांवों में बिजली आपूर्ति ही नही हुई।
लिहाजा तार काटने वाले गिरोह ने पोल पर लगे हजारों किमी अल्मूनियम तार धीरे-धीरे काटकर नेपाल की बर्तन फैक्ट्रियों में खपा डाले। बिजली विभाग इस संबंध में एकाध प्राथमिकी दर्ज करवाने की खानापूर्ति के सिवा कुछ नहीं कर पायी। तरकट्टा गिरोह स्वच्छंद घूमता रहा।
सन् 2004-05 में प्रारंभ राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना भी ऐसे ही दौर से गुजर रही है। कार्यपालक विद्युत अभियंता भोला प्रसाद के अनुसार इस योजना के तहत अब तक 200 गांवों में बिजली पहुंचायी जा चुकी है। योजना के तहत 106.9 करोड़ का आवंटन मिला, जिसमें 77 करोड़ से अधिक खर्च हो गया है। यहां सवाल यह है कि इतनी बड़ी राशि खर्च होने के बावजूद अब तक गांवों में बिजली क्यों नहीं पहुंच पायी?
जानकारों की मानें तो आरजीजीवीवाई के तहत गांवों में विद्युतीकरण के बोर्ड चकाचक लग गये। कई गांवों में पोल भी गड़े, लेकिन घरों तक बिजली नहीं पहुंची। ग्रामीणों की शोरगुल व आंदोलन के बाद जिन गावों तक बिजली गयी भी उन्हें बिजली बोर्ड के सुपुर्द किया ही नहीं गया। ग्रामीणों का सीधा आरोप है कि घर तक बिजली देने के नाम पर संवेदक व उसके दलालों द्वारा ग्रामीणों का आर्थिक दोहन किया जा रहा है।
बिजली विभाग के कार्यपालक अभियंता द्वारा डीएम को दी गयी रिपोर्ट के अनुसार दो सौ गांवों में विद्यतीकरण कार्य पूरा कर लिया गया है। लेकिन वास्तविकता है कि ट्रांसफार्मर खराब होने के नाम पर ये गांव अब भी अंधेरे में हैं। सूत्रों के मुताबिक जब कुछ गांवों में बिजली पहुंचायी गयी तो पैसों की लालच में संवेदक व उसके दलाल ने कई लोगों को अवैध तौर पर घर में कनेक्शन दे दिया। इसकी देखादेखी अन्य लोगों ने भी टोका लगाकर बिजली जलानी शुरू कर दी। फलत: ढाई सौ से ज्यादा ट्रांसफार्मर जल गये। स्वयं कार्यपालक अभियंता स्वीकार करते हैं कि 255 ट्रांसफार्मर खराब पड़े हैं। क्या यह सरकारी अनुसंधान का विषय नहीं बनता कि बिजली जलने से पहले इतनी बड़ी संख्या में ट्रांसफार्मर कैसे खराब हो गये? क्या इन गांवों में घटिया ट्रांसफार्मरों की ही आपूर्ति की गयी थी?
बहरहाल प्रतीत यही होता है कि मौजूदा रफ्तार से अररिया के गांवों तक बिजली कभी नहीं पहुंच पायेगी। जनता अंधेरा झेलती रहेगी तथा भ्रष्ट अधिकारी, ठेकेदार व उसके दलाल मलाई काटते रहेंगे।

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