अररिया, : किसी मामले के फैसले में कितना वक्त लग सकता है। एक साल, दो साल, पांच साल या दस साल। लेकिन यहां एक मामले के फैसले में लग गए 48 साल। इस दौरान दो दर्जन से अधिक न्यायाधीश बदल गये। इन पांच दशकों में कोर्ट में रखी संचिका पढ़ने के काबिल नहीं रही। तब जाकर न्यायालय जमीन विवाद के इस मामले में नतीजे तक पहुंच पायी।
न्यायालय में फैसलों में लगने वाले समय को लेकर यह एक बानगी भर है। खासकर दीवानी मामलों की स्थिति बड़ी नाजुक है। हैमियोपैथिक चाल से चलने वाली भू-विवाद के फैसले बहुत विलंब से हो रहे हैं। इस स्थिति में पक्षकारों की रुचि कम होती जा रही है, जिस कारण न्याय का अंतिम स्वरूप सामने नहीं आ पाता है।
अररिया बसंतपुर वार्ड नं. 05 के शेख भोला ने 22 जुलाई 1949 में एक भूखंड विक्रय पत्र द्वारा निबंधित कराया। लेकिन इसके स्वामित्व को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया। इसको लेकर शेख भोला ने 26 मार्च 1964 को दीवानी कोर्ट में टाईटल सूट नंबर 7303/64 दायर कर दिया था। प्रतिवादी बनाये गए कुर्साकांटा के कमलदाहा निवासी शेख जमील। इस मामले में तारीखें पड़ने लगी। तारीखों का यह सिलसिला लगभग आठ सौ जा पहुंचा। इस दौरान न्यायाधीश बदल गए लेकिन मामला जस का तस बना रहा। मात्र दो सौ रुपये कीमत की इस जमीन को लेकर अदालत में कई संशोधित पेटिशन दायर होते रहे। इस टाईटल सूट को लेकर तकरीबन 800 तारीखे निर्धारित की गयी। वादी डटे रहे लेकिन प्रतिवादी के चेहरे बदल गये। न्यायालय से न्याय की आस दिल में लिए प्रतिवादी जमील इस दुनिया से गुजर गये। मामले में उनके परिजनों शेख छुटहरू वगैरह प्रतिवादी बनाए गये। परंतु 48 साल पुराने इस मामले में कागजों ने भी लोगों का साथ छोड़ दिया। वकीलों व पक्षकारों ने संचिका के पन्ने में लिखी बातों को समझ से परे बताया। अंतत: अररिया के मुंसिफ कोर्ट ने वाद को ससंघर्ष बिना खर्च के 23 मई 2012 को खारिज कर दिया।
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