अररिया : शिक्षा के मामले में पिछड़ा जिला अररिया आज भी अपनी दुर्गति पर आंसू बहा रहा है। यहां के स्कूलों में छात्र संख्या की तुलना में शिक्षकों की संख्या बेहद कम है। इस कारण बच्चों कोअच्छी शिक्षा से वंचित हैं। उन्हें न तो अच्छी शिक्षा प्राप्त हो रही है और न ही शिक्षा का अधिकार का औचित्य साबित हो रहा है। सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा शिक्षा का अधिकार कानून को संवैधानिक दर्जा देने के साथ ही यह तय कर दिया कि एक्ट के प्रभावी होते ही प्रत्येक 30 छात्र पर एक शिक्षक अनिवार्य होगा। लेकिन अररिया में तो इसका दूर-दूर तक पालन नही हो रहा है। एक्ट में निहित प्रावधानों के आधार पर न तो प्राइवेट स्कूल अपना ढर्रा बदलने के लिए तैयार है और न ही सरकारी स्कूल तथा शिक्षा विभाग के अधिकारी कोई खासा ध्यान दे रहे हैं। जिसका खामियाजा स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को भुगतना पड़ रहा है।
जिले के प्राईवेट स्कूल में ही नही वरन सरकारी प्राथमिक व मध्य विद्यालयों में भी शिक्षकों का घोर अभाव है। एक सरकारी आंकड़े पर गौर करें तो जिले के 1768 प्राथमिक व मध्य विद्यालय में कुल 5 लाख 35 हजार 86 बच्चे नामांकित है। इन स्कूलों में नियमित व नियोजित शिक्षकों की कुल संख्या 8770 है जो 62 बच्चे पर एक शिक्षक का अनुपात है। ऐसे भी सरकारी स्कूलों की पढ़ाई राम भरोसे ही है। इसके बावजूद छात्रों का नामांकन तो हो रहा है पर शिक्षकों की संख्या कम होने के कारण काफी परेशानी हो रही है।
शहर के अस्सबील एकेडमी में अब तक 500 से अधिक छात्रों का नामांकन शुरू हो चुका है। अभी शुरूआती दौर में है। लिहाजा छात्रों की संख्या और बढ़ेगी परंतु स्कूल में अबतक 17 शिक्षक हीं कार्य कर रहे हैं। एकेडमी के प्रिंसिपल एमई हसन का कहना है कि छात्रों पर इसका असर नही पड़ने दिया जाता है।
वहीं शहर के बड़े चर्चित व नामी प्राईवेट स्कूल में 900 से अधिक छात्र नामांकित है। लेकिन वहां शिक्षकों की संख्या मात्र 20 है जो आरटीई एक्ट का खुला उल्लंघन है। ऐसे और भी कई स्कूल है जहां शिक्षक छात्र अनुपात बहुत अधिक है।
इधर इस संबंध में जिला शिक्षा पदाधिकारी राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि धीरे-धीरे एक्ट का पालन शुरू हो जायेगा।
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