अररिया : सिकटी प्रखंड अंतर्गत पोठिया गांव के सरायन मल्लिक को अपना चापाकल नहीं है। लिहाजा वह बगल के तालाब का पानी पीता है। उसे विभाग द्वारा अब तक हैंड पंप नहीं मिल पाया है। सरायन जैसे कई लोग जिले में मिल जाते हैं, जिन्हें पीने के पानी की दिक्कत होती है।
खासकर महादलित व कमजोर तबके की बस्तियों में हैंडपंपों की कमी वहां पेय जल का संकट पैदा कर रही है।
अररिया के गावों में पीने के पानी का संकट आज भी बना हुआ है। लिहाजा दिल्ली पंजाब कमा कर लौटने वाले युवकों की पहली वरीयता हैंड पंप होती है। अपनी कमाई का पहला इस्तेमाल वे चापाकल खरीदने में करते हैं।
हालांकि पीएचईडी के कार्यपालक अभियंता अशोक कुमार यह नहीं मानते कि जिले में पेय जल का संकट है। उनका कहना है कि यहां पीने के पानी पचीस से तीस फीट की गहराई में मिल जाता है और आम जन के लिए हैंड पंप गाड़ना कोई बड़ी समस्या नहीं है। उन्होंने बताया कि जिले की तकरीबन हर बस्ती में हैंड पंप उपलब्ध है। लेकिन ग्रामीणों की मानें तो समाज में पनप रही व्यक्तिवादी सोच के कारण उपलब्ध चापाकलों से पानी की समस्या हल नहीं होती। चापाकल तो है, लेकिन यह मेरे दरवाजे पर है, हमही इसका पानी पीयेंगे। खराब हो जायेगा तो तुम ठीक करवाओगे क्या?
इधर, कार्यपालक अभियंता श्री कुमार की मानें तो लगभग दो हजार चापाकल सामान्य या विशेष मरम्मत के अभाव में बंद पड़े हैं। उन्होंने कहा कि नये चापाकलों का निर्माण भी जल्द करवाया जायेगा।
जहां तक जल प्रबंधन का प्रश्न है, बथनाहा में लघु पन बिजली घर के साथ डैम निर्माण की शुरूआत हो चुकी है। हालंकि जल प्रबंधन की दिशा में बहुत कुछ किया जाना अभी भी शेष है।
शुद्ध पेय जल मुहैया करवाने के लिए सरकारी स्तर से आयरन रिमूवर संयंत्र व सोलर चालित पेय जल प्लांट लगवाने की शुरूआत तो हो चुकी है, लेकिन आइआरपी सेट्स अब भी विभाग में व गांवों में जहां तहां पड़े नजर आते हैं।
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