अररिया : कोसी की पूर्वी कैनाल सिस्टम विगत दो दशक से फेल है। जिले के तकरीबन पांच सौ पुराने तालाब व सौ से अधिक जलकर सूखे पड़े हैं। कोसी फ्लड प्लान की एक दर्जन से अधिक नदियां सूख चुकी हैं। यानी पानी के सैलाब के बीच रह कर भी जल का संकट। यह तस्वीर अररिया जिले की है। यानी, यहां पानी बचाने की सारी घोषणाएं डपोरशंखी ही साबित हुई हैं।
इस संकट का क्लाइमेक्स भी अपनी ही तरह का है। किसानों की पीड़ा है कि खेतों को वक्त पर पानी नहीं मिलता। वहीं, कोसी नहरों में छठ जैसे महापर्व के मौके पर श्रद्धालु पंपिंग मशीन व जेसीबी के सहारे पानी लाते हैं।
जानकारों की मानें तो यह संकट प्रशासन की ढिलाई, विभाग की उदासीनता व एक नजरिये से कहें तो मेन मेड है। इस जिले में जल संग्रहण व संचयन को ले विभिन्न सरकारें अस्सी के दशक से ही घोषणाएं करती आ रही हैं। लेकिन आज तक दावे भले ही खूब हुए हों, किसी घोषणा ने हकीकत का रूप नहीं लिया है।
आजादी के बाद से इलाके को बाढ़ के कहर से निजात दिलाने के लिए कृत्रिम जलाशयों के विकास, छोटे छोटे डैम, बराज, वीयर्स, छिलका, फाटक व मिट्टी के बांध बनाने के नाम पर वादों व दावों का दौर चला, लेकिन हुआ कुछ नहीं। नेताओं व अधिकारियों के दौरे के नाम पर लाखों खर्च जरूर हुए।
महानंदा बेसिन परियोजना, जिसके अधीन परमान व कनकई समूह की नदियां भी आती हैं, के लिए विगत एक दशक से प्रयास चला। योजना आयोग की उच्च स्तरीय टीम ने क्षेत्र भ्रमण किया। कार्य की स्वीकृति मिली तथा पहली किस्त के रूप में साढ़े छह सौ करोड़ रुपयों का आवंटन भी प्राप्त हुआ, लेकिन धरातल पर कही काम नजर नहीं आता।
इस योजना के तहत इलाके की सारी नदियों के किनारों पर बांध व जल संचयन को ले जलाशयों का निर्माण किया जाना था। इन जलाशयों के पीछे यह उद्देश्य था कि इनसे लीन सीजन में जहां सिंचाई व अन्य कार्यो के लिए पानी मिलेगा, वहीं इनका उपयोग जल से जुड़े अन्य कार्यो के लिए भी किया जा सकेगा।
कोसी की बाढ़ भले ही 2008 में आयी हो, इस जिले से गुजरने वाली पूर्वी कोसी नहरें विगत दो दशक से खस्ताहाल बनी हैं। आंकड़े बताते हैं कि इस दौरान कोसी की नहरों से सिंचन लक्ष्य के विरुद्ध पांच प्रतिशत सिंचाई भी नहीं हुई।
बाढ़ को गये साढ़े तीन साल बीत गये, लेकिन अब तक नहरों को कार्ययोग्य नहीं बनाया जा सका है। जबकि इनके जीर्णोद्धार के लिए अरबों रुपये व्यय किये जा चुके हैं।
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