अररिया: अररिया की जमीन, आबोहवा व आम आदमी में बहुत दम है। इस क्षमता का इस्तेमाल कभी कभी होता भी है। यहां के गावों में जल संचयन की योजनाओं में आम जन की इस सकारात्मक क्षमता का जौहर कई मौकों पर दिखा है।
गांवों में आज भी सरकारी लालफीताशाही व अफसरी तामझाम से दूर ग्रामीण सहयोग के अनुपम उदाहरण के रूप में कई बांध, छिल्का व चिरान आदि दिख जाते हैं, जो इस बात को साबित करते हैं कि यहां की आम आबादी जल के प्रति संवेदनशील रही है।
यह बात अलग है कि बीतते वक्त के साथ एवं सिंचाई के बोरिंग व आधुनिक मशीनरी के प्रवेश के बाद लोगों के बीच नदियों व कुदरती जल स्रोतों के विकास के प्रति आकर्षण घटा है। लेकिन जल प्रबंधन को ले गांवों में आज भी श्रमदान होता है।
अररिया कालेज में समाज शास्त्र के एसोसिएट प्रोफेसर डा. सुबोध कुमार ठाकुर की मानें तो इस सोच को विकसित कर न केवल पर्यावरण को बचाया जा सकता है, बल्कि हर बात के लिए सरकारी तंत्र का मुंह जोहने की बाध्यता भी समाप्त हो सकती है।
भरगामा प्रखंड के सिरसिया गांव में तकरीबन सौ साल पहले स्थानीय ग्रामीणों ने एक अंग्रेज अधिकारी के नेतृत्व में कोसी की धार को जल संग्रह केंद्र के रूप में विकसित कर लिया था। यह संरचना आज भी मौजूद है। गांव के जानकारों के अनुसार आसपास के हजारों ग्रामीणों ने इस संरचना को बनाने में निशुल्क कार्य किया था क्यों कि इससे उनकी हजारों एकड़ जमीन खेती के लायक हो जाती थी तथा लीन सीजन में पानी की उपलब्धता भी पूरी होती थी।
इसी प्रखंड से सटे मोगला घाट में स्थानीय लोगों ने कोसी की प्रखर सहायक कमला की धार को ही बांध बना कर मोड़ दिया था।
लेकिन मौजूदा दूर में सब कुछ 'लिप सर्विस' तक सिमट गया है। नेतृत्व की कमजोरी से जल संचयन की योजनाएं आकर नहीं ले रही है। गांव वही, ग्रामीण वही और जरूरतें भी वैसी ही, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि समाजिक व राजनीतिक नेतृत्व दुर्बल हो गया है।
जानकारों की मानें तो ग्रामीण जरूरतों के अनुसार जल प्रबंधन होने से न केवल बाढ़ की विभीषिका से बचा जा सकता है, बल्कि बाढ़ के फालतू पानी का सुखाड़ के वक्त उपयोग कर खेतों की हरियाली बरकरार रखी जा सकती है। सीमा पार नेपाल में ऐसा हो भी रहा है।
वहीं, इस इलाके में पहले पानी के प्रति बेहद जागरूकता थी और कुआं, तालाब आदि का निर्माण सीधे सामाजिक प्रतिष्ठा से जुड़े थे। लेकिन इन दिनों ऐसा नहीं हो रहा है। अब जबकि पानी की किल्लत व कई मौकों पर पानी की अधिकता लोगों को पानी पानी कर रही है तो पानी के प्रति कुछ सुगबुगाहट भी होने गली है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री तस्लीम उद्दीन जल संचयन के बड़े हिमायती रहे हैं। उन्होंने बताया कि पानी के प्रति जागरूकता बेहद जरूरी है। क्योंकि कृषि पर आधारित इस इलाके में सब कुछ पानी पर ही निर्भर है। उन्होंने कहा कि साढ़े छह सौ करोड़ की महानंदा बेसिन परियोजना पर अगर ठीकठाक काम होता है तो जल प्रबंधन इस इलाके के लिए वरदान साबित हो जायेगा। लेकिन मौजूदा नेतृत्व साफ तौर पर इस दिशा में उदासीन नजर आता है।
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