अररिया : रेणु की तीसरी कसम फिल्म की लोकेशन शूटिंग के दौरान पलटनिया सड़क पर स्थित बौंसी गांव के एक कुएं की भी शूटिंग की गयी थी। शूटिंग को याद करने वाले कई लोग आज भी मौजूद हैं तथा चाव के साथ इस घटना को सुनाते हैं। सतह से पंद्रह फीट की ऊंचाई वाला यह अष्टफलक कुआं आज भी मौजूद है। अतीत की शानोशौकत से भरपूर लेकिन वर्तमान से मोहभंग जैसी स्थिति। जर्जर, उपेक्षित व उदास सा।
जिले में जल संचयन व संरक्षण की हकीकत इस कुएं की मौजूदा दुर्दशा से बयां हो जाती है।
किसी वक्त इलाके में तालाब व कुआं बनवाना स्टेटस सिंबल होता था। जिले में तकरीबन तीन हजार कुएं थे। हर गांव में चार पांच की संख्या में। वहीं तालाबों की संख्या लगभग तीन हजार थी। लेकिन देखरेख के अभाव में कुएं व तालाब दोनों जर्जर होते चले गये। सरकारी आंकड़ों को देखें तो इस वक्त 424 सरकारी तालाब व लगभग एक हजार निजी तालाब हैं। वहीं, नदियों के धारा परिवर्तन से बने जलकरों की संख्या भी लगभग सौ के आसपास है।
जिले की संस्कृति में तालाब निर्माण प्रतिष्ठा का बिंदु माना जाता था और गांवों में पोखर यज्ञ करवाने की हसरत रखने वाले हजारों लोग आज भी मिल जायेंगे। कुएं लगभग समाप्त हो गये हैं। यहां तक कि शादी विवाह के अवसर पर कूप पूजन के लिए भी गंदे व बंद कुओं का ही आसरा रहता है।
पानी के आधुनिक संसाधनों ने कुओं व तालाबों को निगल लिया है। पहले सिंचाई के लिए हर गांव में करीन की व्यवस्था होती थी और बरसात के मौसम में इकट्ठा जल को करीन व ढौंस के माध्यम से खेतों में ले जाया जाता था। लेकिन पंप सेट व बांस बोरिंग के आगमन के बाद तालाब व कुओं पर निर्भरता कम होती गयी और भूगर्भीय जल का दोहन अधिक होने लगा।
उपेक्षा के कारण तालाबों का क्षेत्रफल भी सिकुड़ा है। गांवों में घूमते वक्त आपको बीच में जर्जर जाठ वाले कई सूखे तालाब आराम से दिख जायेंगे। इनमें पानी नहीं होता तथा ये मवेशियों का चारागाह बन कर रह गये हैं। इधर, जानकारों की मानें तो तालाबों जीर्णोद्धार कर अंडरग्राउंड वाटर की रिचार्जिग आराम से की जा सकती है।
रजवैली गांव के शिवानंद विश्वास ने बताया कि तालाबों की जर्जर स्थिति से ग्रामीण अर्थव्यवस्था व संस्कृति पर खराब असर पड़ा है। अब तो मवेशी को भी पानी पिलाने के लिए चापाकल से पानी भर कर ले जाना पड़ता है। पुराने जमाने में तालाब के महाड़ छठ व अन्य मौकों पर लोगों के जुटान का सुंदर स्थल होते थे, लेकिन अब यह बात नहीं रही। अब तो वैसे तालाब ही नहीं हैं। बसैटी शिव मंदिर के पास दस एकड़ क्षेत्रफल वाला ऐतिहासिक तालाब पूरी तरह समाप्त हो चुका है। ऐसी ही स्थिति लगभग पांच सौ पुराने तालाबों की है।
जल संचयन के लिए चैक डैम व बांध निर्माण की योजनाएं तो बनी पर उन्हें क्रियान्वित नहीं किया गया। अस्सी के दशक में लोहंदरा व भलुआ के संगम पर चैक डैम व डेहटी गांव में बराज बनाने की योजना स्वीकृत हुई, लेकिन उस पर अमल आज तक नहीं हुआ। सरकार की उदासीनता व राजनैतिक नेतृत्व की कमजोरी के कारण
चार साल पहले स्वीकृत 650 करोड़ की महानंदा बेसिन परियोजना पर भी ग्रहण लग चुका है।
साइड स्टोरी
मनरेगा के तहत बनेंगे 436 तालाब: सरवणन
अररिया, जाप्र: जल संरक्षण की खस्ताहालत को जिला प्रशासन ने गंभीरता से लिया है। जिलाधिकारी एम सरवणन ने बताया कि मनरेगा के तहत इस जिले में कुल 436 तालाबों का निर्माण किया जायेगा।
उन्होंने बताया कि तालाबों के निर्माण के लिए नरेगा पीओ की बैठक में स्पष्ट निर्देश दे दिए गये हैं तथा हर पंचायत में 25 अप्रैल से काम शुरू करने का आदेश दिया गया है। तालाब निर्माण का कार्य अगले एक माह में पूरा कर लिया जायेगा।
उन्होंने बताया कि इन तालाबों के बन जाने से जिले में जल संरक्षण के प्रयासों को बल मिलेगा तथा आम जन के बीच पानी को ले जागरूकता का भी संचार होगा।
श्री सरवणन ने बताया कि जिले की सभी पंचायतों में प्रस्तावित इन तालाबों को कई प्रकार के एलाइड एक्टिवीटी से भी जोड़ा जायेगा। मछली पालन, बत्तख पालन व सिंचाई के अलावा दैनिक कार्यो के लिए जरूरी पानी भी इन तालाबों से मिलेगा।
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