अररिया : प्रदूषण, खेतों में रसायनिक खाद व कीटनाशकों का प्रयोग तथा भूगर्भीय जल के बेहिसाब इस्तेमाल के कारण अररिया जिले में जल संकट गहरा रहा है। नरपतगंज प्रखंड में स्थिति चिंताजनक बतायी जाती है। यहां चापाकलों का पानी बेहद नीचे चला गया है।
इधर, जल संचयन व संरक्षण के प्रति आम जन के बीच जागरूकता की कमी स्थिति को और बिगाड़ रही है। नहरें विगत दो दशक से फ्लाप चल रही हैं। लिहाजा किसान अपने खेतों की सिंचाई के लिए बांस बोरिंग व प्राकृतिक जलाशयों का सहारा लेने को विवश हैं। कुल मिला कर तस्वीर यही है कि ग्राउंड वाटर की रिसाइकलिंग नहीं हो रही है। शायद जल स्तर नीचे जाने का कारण भी यही है।
इस संबंध में लोक स्वास्थ्य विभाग के कार्यपालक अभियंता अशोक कुमार ने बताया कि हाल के वर्षो में खेतों की उप बढ़ाने के लिए रसायनिक खादों व कीटनाशी दवाओं का प्रयोग बेहद बढ़ गया है। आबादी बढ़ने के कारण सतह का प्रदूषण भी बढ़ा है। प्लास्टिक कचरों का क्वांटम लगातार बढ़ता जा रहा है। इन कारणों से अंडर ग्राउंड वाटर का लेवल नीचे जा रहा है।
कार्यपालक अभियंता ने बताया कि जल के संबंध में आम जन के बीच जागरूकता कस प्रसार बेहद जरूरी है। क्योंकि जन सहयोग के बिना प्रदूषण के कहर पर नियंत्रण नहीं पाया जा सकता। उन्होंने बताया कि कंक्रीट सड़कों का बढ़ता क्षेत्र फल भी पानी की रिसाइकलिंग में बाधक बन रहा है। क्यों कि इन सड़कों से जमीन का पोरस नेचर समाप्त हो जाता है। उन्होंने कहा कि केवल इसी जिले में हजारों वर्ग मीटर कंक्रीट सड़कें हैं और जल स्तर बिगाड़ने में ये अहम भूमिका निभा रही हैं।
इधर, जानकारों का मानना है कि इस जिले में 2008 की कोसी फ्लड के बाद से भूमि गत जल की स्थिति व पानी की गुणवत्ता बिगड़ी है। सन 2008 के बाद से जल स्तर तो नीचे गया ही है, कई गांवों में चापाकल के पानी में दुर्गध भी मिलने लगा है। यह परेशानी नरपतगंज प्रखंड के गांवों में अधिक है।
कोसी की बाढ़ से पहले इस प्रखंड में आम तौर पर पचीस तीस फुट पर पानी मिल जाता था, लेकिन अब पचास या उससे भी नीचे जाना पड़ता है।
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