Sunday, June 10, 2012

मैला आंचल पर निरक्षरता का अंधकार अब भी गहरा


अररिया : किसी भी समाज की मजबूती के लिए शिक्षा प्रमुख निर्धारक तत्व होता है। लेकिन इस पैमाने पर अररिया का स्थान अब भी बेहद नीचे है। मैला आंचल की धरती पर अज्ञान का अंधकार अब भी गहरा है। शिक्षा को लेकर मिलने वाले सरकारी दर्जे को ही देखें तो सूबे में इसका स्थान नीचे से दूसरा है। सदियों से वंचित इस इलाके में शिक्षा आम जन का सरोकार जरूर बनी है, उन तक ज्ञान की लौ पहुंचने में कई बाधाएं हैं।
सर्व शिक्षा अभियान की राह भ्रष्टाचार व अधिकारियों की ढिलाई के चलते कांटों से भर गयी है। जिले में एक तो शिक्षकों की कमी है वहीं, उनके गैर शैक्षणिक कार्यो में लगने के कारण शिक्षा का स्तर ऊपर नहीं उठ पा रहा है।
आंकड़ों पर गौर करें तो जिले के 555 विद्यालय भवनहीन व 305 विद्यालय अब भी भूमिहीन हैं। अधिकारी यह कह कर पल्ला झाड़ लेते हैं कि कार्रवाई की जा रही है। लेकिन आखिर कब तक बनेंगे इन स्कूलों के भवन? हेड मास्टरों को स्कूल भवन निर्माण का ठेकेदार व बच्चों के लिए एमडीएम की थाली सहेजने वाला बना दिया गया है। आखिर वे पढ़ाई पर कब ध्यान देते हैं?
माध्यमिक व उच्च शिक्षा की स्थिति और अधिक खराब है। एक तो जिले में आबादी के हिसाब से शिक्षण संस्थाएं नहीं हैं। दूसरे जहां हैं भी वहां संसाधनों की घोर कमी है। हाई स्कूलों में मात्र दो नियमित हेड मास्टर हैं। शेष का कार्य प्रभारी अध्यापकों द्वारा ही चल रहा है। वहीं, कालेजों में छात्रों की संख्या लगातार बढ़ रही हैं, लेकिन कर्मचारियों व शिक्षकों की संख्या घट रही है। अररिया कालेज व फारबिसगंज कालेज में शिक्षक व कर्मियों के लगभग आधा पद रिक्त हैं। लेकिन उन्हें भरने की कोई व्यवस्था नहीं की जा रही है। जबकि प्री पीएचडी योग्यता धारी युवाओं को सृजित पदों पर संविदा के आधार पर रखकर पढ़ाई-लिखाई के सिलसिले को आराम से दुरुस्त किया जा सकता है।
सबसे बड़ी बात तो यह है कि सरकार द्वारा शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए प्रारंभ की गयी अधिकांश योजनाएं भ्रष्टाचार व गबन की शिकार हैं। डेहटी पैक्स में स्कूल भवनों के लिए आयी धन राशि रख देने के कारण दर्जनों स्कूलों में भवन निर्माण कार्य खटाई में पड़ गया और तत्कालीन डीएसई दिनेश कुमार चौधरी को जेल की हवा खानी पड़ी। भवन निर्माण में गबन के आरोप में ही एसएसए के कार्यपालक अभियंता हटाए गये।
सुशिक्षित समाज की राह में आने वाले प्रमुख गतिरोध
-305 विद्यालय अब भी भूमिहीन
-50 हजार बच्चे अब भी स्कूल से बाहर
-200 स्कूलों में मध्याह्न भोजन बंद
-शिक्षक नियोजन में अनियमितता की शिकायत
-पांच सौ नियोजित शिक्षक बर्खास्त
-स्कूल से अक्सर शिक्षकों के गायब रहने की शिकायत
-लगभग 555 स्कूलों को अब भी भवन नहीं
-पचास हेडमास्टर सहित दो सौ शिक्षक निलंबित
-स्कूल संचालन में विशिस की राजनीति हावी
-मात्र दो हाई स्कूलों में नियमित हेड मास्टर
-राशि व्यय के बावजूद स्कूलों में खेलकूद गतिविधियां शून्य
-कालेजों में शिक्षकों व कर्मियों के आधे से अधिक सृजित पद रिक्त
-तकनीकी शिक्षण संस्थाओं का घोर अभाव

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