Thursday, June 14, 2012

जल संरक्षण बना सामाजिक विमर्श का मुद्दा, विभाग अब भी पीछे


अररिया : पानी बचाने के लिए दैनिक जागरण द्वारा चलाये गये अभियान के बाद अररिया जिले में कम से कम एक सफलता जरूर मिली है। जल संरक्षण की बात इस जिले में सामाजिक विमर्श का मुद्दा बन चुकी है। हालांकि, आमजन तक पानी पहुंचाने व पानी को बचाने की जागरूकता के लिए जिम्मेदार सरकारी विभाग अब भी पीछे ही हैं। हालांकि, मनरेगा के तहत जिला प्रशासन ने 436 तालाबों के निर्माण की पहल की तथा पंचायतों में इस दिशा में कार्य शुरू किया है। यह पहल आने वाले दिनों के लिए अच्छा संकेत है, लेकिन पानी बचाने की दिशा में अब भी बहुत कुछ किया जाना शेष है।
भीषण गर्मी के कारण तालाब, नदिया, कुंआ व चापाकल सूखने लगे हैं। अंडरग्राउंड पानी का स्तर नीचे चला गया है। जिलावासी बरसात की बेसब्री से प्रतिक्षा कर रहे है। पानी के मामले में धनी माने जाने वाले इस जिले के लिए यह चौंकाने वाली बात है। इस संबंध में जानकारों का मानना है कि विगत एक दशक से पानी की वांछित रिचार्जिग नहीं हो रही है। जिले में करोड़ों वर्ग फीट कंक्रीट की सतह पानी की रिचार्जिग में सबसे बड़ी बाधा बन रही है। महानगरों में शुरू की गयी रेनवाटर हार्वेस्टिंग परिकल्पना अररिया जैसे जिलों के लिए अब भी दूर की ही कौड़ी है। पानी बर्बाद होता है। उसे बचाने की कोशिश नहीं होती है। बारिश के दिनों में छत से नीचे आने वाले पानी को बचाने की बात कौन कहे, यहां तो नदियों के रास्ते खरबों घन मीटर पानी हर साल बेकार बहकर समुद्र में चला जाता है और जिले में रह जाती है सिर्फ बालू और सिल्ट। सिल्ट की सफेद चादर पर जब बरसात की बूंदें पड़ती हैं तो तेजी के साथ उनका वाष्पीकरण होता है और पानी नीचे जाने की बजाए आसमान में चला जाता है। जानकार मानते हैं कि पानी का ठहराव नहीं होने के कारण जलस्तर में कमी का अभिशाप सामने आ रहा है।
ज्ञात हो कि इस जिले में पहले बड़ी संख्या में कुदरती जलाशय थे। इनमें बारिश का पानी आकर रूकता था। इस कारण जैवविविधता के मामले में अररिया को दुनिया में सर्वोत्तम माना जाता है, लेकिन सिल्ट के कारण इस जिले के पांच दर्जन कुदरती जलाशय अब विलुप्त हो चुके हैं। इनमें चातर, संदलपुर, गैड़ा, चन्द्रदेई, बेलई, पोठिया, घोड़घाट, वीरवन, सीनबाड़ी, झोरा आदि शामिल है।
इधर, जिला प्रशासन द्वारा प्रारंभ की गई जल संरक्षण की महती योजना से उम्मीद की किरण जगी है। जिलाधिकारी एम. सरवणन ने बताया कि मनरेगा के तहत प्रत्येक पंचायत में दो-दो तालाब निर्माण करने का निर्देश दिया गया है। इससे न केवल पानी को बचाया जा सकेगा, बल्कि मछलीपालन व अन्य सहायक गतिविधियों को भी बढ़ावा मिलेगा।

0 comments:

Post a Comment