Sunday, July 3, 2011

अररिया बाजार में सार्वजनिक शौच स्थलों की किल्लत


अररिया : यदि आप अकेले या घर की महिलाओं के साथ न्याय पाने के लिये अदालत परिसर या खरीददारी के लिये अरयिया बाजार जा रहे है तो जरूर जाईये। परंतु ध्यान रहे, कहीं अचानक मल-मूत्र त्यागने की जरूरत पड़े तो आपको परेशानी उठानी पड़ सकती है।
जिला मुख्यालय स्थित एक-दो स्थानों को छोड़ जहां आपकों सार्वजनिक शौचालय ढूंढने को भी नही मिलेंगे। वही मूत्रालय के नाम पर कोई ठिकाना शायद ही आपकों मिल पाये। उसमें भी यदि महिलायें साथ में हो तो आपकी बेईज्जती तय है। जिसके लिये आपकों अररिया के बाजार में लोगों की नजरे बचाकर कोई दुकान या सरकारी दीवालों के कोना खोजना पड़ सकता है या अदालत परिसर में बनें उंची दीवाल हो या खुले आसमान। हालांकि अदालत परिसर में हाल के दिनों में शौचालय बना तो है, लेकिन ऐसे स्थानों पर बना है जहां दूर-दराज से पहुंचे ग्रामीण हो या शहर के बाबू। उनकी नजरे नही पड़ती। वह भी यह शौचालय जहां अपनी रख-रखाव का संकट झेल रहा है, तो इसका मेटनेंस लोगों को अपनी ओर नही खींच पा रहा है। मुवाक्किलों की सदा शिकायत रहती है कि शौचालय बंद पड़ा है या उसमें पानी की किल्लत।
उधर मुत्रालय के नाम पर कोई स्थाई स्थान यहां नही है। प्रति दिन हजारों लोगों की आवाजाही का यह प्रमुख केन्द्र के लोग मूत्र त्याग की तलब पर लोगों की नजरें बचा हाजत खाना के समीप हो या अदालत भवन के दीवालों के इर्द गीर्द या कहिये चाहरदीवारी की आड़ में कोने की तलाश लेकर इस संकट से छुट कारा पा रहे हैं। उसमें महिलाओं की स्थिति क्या हो सकती है खूद समझ सकते हैं।
यही स्थिति अररिया बाजार की है। आप अपने बाल-बच्चों के साथ हो या अकेले गये हो। मल-मूत्र त्यागने की संकट असहनीय मानिये। खैर मनाईये हाइस्कूल प्रशासन को। जहां स्थानीय दुकानदार हो या बाजार आये आम लोग। चुपके अपनी आदत बनाये स्कूल के मुख्य गेट होते घूसते हैं तथा इस प्रागंण ें अपना मूत्र त्याग राहत के साथ बाहर निकलते है। अन्य कोई सार्वजनिक शौचालय बाजारों में अनुपलब्ध है।
वैसे सामाहरणालय प्रागंण में शौचालय तो है, लेकिन इसके मेन गेट पार कर शाम ढलते वहां जाना दुभर है। यही स्थिति अररिया बस स्टेंड व जीरो माइल स्टेंड की भी मानिये। जो अत्यंत जर्जर व वर्षो पूराने है। जहां जाकर मल-मूत्र त्यागना बड़ी बीमारी के साथ देना कहा जाता है। प्रबुद्ध जनों का कहना है कि नागरिक सुविधा के नाम पर इन स्थानों का नाम लेना यानि रोंगते सिहर जाना है। यह स्थिति एक बड़ी भयावक कल्पना की ओर जहां इशारा करती है, वहीं सरकारी सभी दावों के विपरीत जिला मुख्यालय स्थित कचहरी व कार्यालयों में काम निपटाने पहुंचने वाले लोग हो या बाजार घरेलू सामान खरीददारी करने वाले हर बाबू। हर लोग इस आपाधापी के युग में इन कार्यो के निष्पादन के लिये भारी संकट झेल रहे हैं।

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