Sunday, April 1, 2012

कुपोषण की जंग में सिपाही के कंधे हो रहे कमजोर


नरपतगंज (अररिया) : कुपोषण की जंग में सरकारी सिपाही के कंधे ही कमजोर होने लगे हैं। सरकार ने जिन आंगनबाड़ी कर्मियों के कंधों पर गरीब बच्चों को कुपोषण से मुक्ति दिलाने का भार सौंपा है, आज खुद उनके बच्चे कुपोषण के शिकार हो रहे हैं। सेविका व सहायिका न तो अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा दे पा रही हैं और न ही परिवार को दो जून का भर पेट भोजन। दरअसल सरकार सेविका और सहायिका को जितना मानदेय दे रही है वह मनरेगा मजदूरों के वेतन की भी आधी से कम है। ऐसे में आंगनबाड़ी सेविका-सहायिका भविष्य को लेकर चिंतित हैं तथा अपने ही बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए जूझ रही हैं। हालांकि सरकार ने उक्त आंगनबाड़ी कर्मियों का मानदेय दो गुणा करने की घोषणा साल भर पहले ही की थी, किंतु आज तक उस पर कोई अमल नहीं हो पाया है।
इस संबंध में बाल विकास परियोजना पदाधिकारी गीता कुमारी का कहना है कि अधिकारिक रूप से सेविका-सहायिकाओं का मानदेय बढ़ाने का कोई आदेश उन्हें अब तक नहीं मिला है। आदेश आते ही सेविका और सहायिकाओं के खाते में बढ़ा हुआ मानदेय भेज दिया जाएगा।
गरीब कुपोषित बच्चों के विकास व शिक्षा के लिए सरकार ने बाल विकास परियोजना के तहत आंगनबाड़ी केंद्रों की स्थापना की है। लेकिन आंगनबाड़ी केंद्रों पर जिन सेविका-सहायिका को तैनात किया गया है उन्हें क्रमश: 1500 और 1000 प्रति माह की दर से मानदेय दिया जा रहा है जो एक परिवार को चलाने के लिए नाकाफी है। ऐसे में सेविका व सहायिकाओं के बच्चे व परिवार का भविष्य अधर में लटका है। इतने कम पैसे में बच्चों के बेहतर शिक्षा की बात तो दूर परिवार को दो जून का भोजन भी ठीक ढंग से वे नहीं खिला पाती हैं। उनकी दयनीय स्थिति के मद्देनजर सरकार ने 2011-12 के बजट में ही सेविका व सहायिका का मानदेय दो गुणा किए जाने की घोषणा की थी। सरकार के इस आदेश से उनके परिवारों में खुशी की लहर दौड़ गई थी। लेकिन साल भर बीत जाने के बाद भी उन्हें बढ़ा हुआ मानदेय नही मिल पाया। जबकि उन पर कार्य का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है। केन्द्र संचालन के साथ साथ पोलियो, जनगणना सहित अन्य राष्ट्रीय कार्यक्रमों में उनका सहयोग लिया जाता है। ऐसे में इस महत्वपूर्ण योजना को सरजमीन पर उतारने में सरकार के ये मुलाजिम कितना दिलचस्पी दिखा पायेंगे, यह सोचने वाली बात है।

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