Wednesday, July 13, 2011

रोड रेस व फेस बुक की भेंट चढ़ गया कामिक्स

फारबिसगंज (अररिया) : बच्चों के लिये कामिक्स की दुनियां अब बीते दिनों की बात हो चुकी है। बच्चे कामिक्स और कार्टून की किताबों की दुनियां से दूर हो चुके हैं। कामिक्स और कार्टून की किताबों से मिलने वाली व्यवहारिक और ज्ञानव‌र्द्धक बातें अब उन्हें नहीं मिलती। बचे अब कंप्यूटर गेम्स और इंटरनेट में खो चुके है। जहां उन्हें कामिक्स के चाचा चौधरी की चतुराई और साबू की वीरता से भरी कहानियों से अलग रोड रेस, और फेसबुक से भेंट हो रही है। बच्चों के मनोरंजन के साधन हीं बदल चुके हैं।
किताब की दुकानों में भी अब कामिक्स और कार्टून की किताबें नहीं बिकती। एक पुरानी दुकान दीपक बुक स्टाल के अजय कुमार बताते हैं कि उन्होंने पिछले दो वर्षो से कामिक्स बेचना ही छोड़ दिया है। अजय ने बताया कि बच्चे अब कामिक्स खरीदने नही आते। राज बुक डीपो के बबलू कुमार ने वर्षो तक कामिक्स बेची। लेकिन वे भी अब कामिक्स बेचना छोड़ चुके है। बबलू बताते है कि बच्चे मनोरंजन के माध्यम को अपना लिया है। वहीं अजय का कहना है कि कामिक्स आज 15 से 30 रुपया तक में कहीं-कहीं मिल जाता है लेकिन बच्चों के पास इसे पढ़ने के लिये फुर्सत नही है। चाचा चौधरी,अकबर बीरबल, बांके लाल, नागराज, ध्रुव, बिल्लो, भोकाल, डोगा जैसे दर्जनों चरित्र के कामिक्स की किताबें आज से दस वर्ष पूर्व तक बच्चों का मनोरंजन करता रहा है। कामिक्स पहले 25 पैसे की मामूली किराया पर बच्चे दुकानों से पढ़ने के लिये लेते थे।
कामिक्स के एक-एक शब्द बच्चों का भरपूर मनोरंजन करते थे। वहीं सामाजिक, नैतिक और व्यवहारिक ज्ञान का खजाना भी मिलता था इन किताबों में। लेकिन कंप्यूटर में नैतिकता और समाजिक ज्ञान कहां से मिलेगा। वर्ग आठ के एक छात्र आयुष अग्रवाल ने कहा कि उसे अब कंप्यूटर और फेसबुक में मजा आता है। यहां उसने कई दोस्त बना रखे है। आयुष ने कहा कि कामिक्स पढ़ने में बहुत समय लग जाता है। वहीं आयुष की मां संगीता अग्रवाल अपने दिनों की याद करते हुए कहती है कि कामिक्स आज भी उन्हें पढ़ने का मन करता है जिसे पढ़कर मन प्रफुल्लित हो जाता है। वे बताती है कि आज के बच्चे तेज रफ्तार से भाग रही नई दुनियां में जी रहे है। जहां कंप्यूटर और इंटरनेट जीवन का अभिन्न हिस्सा हो चुका है। घर-घर में कंप्यूटर है। साइबर कैफ खुले हैं। ऐसे में बच्चों के मनोरंजन के साधन तो बदला ही था। लेकिन श्रीमती अग्रवाल भी कहती है कि बच्चों को कामिक्स से मिलने वाली नैतिक, सामाजिक ज्ञान अब इंटरनेट और साइबर कैफे में भी नही मिल रहा है। एक विद्यालय के शिक्षक प्रमोद कुमार बताते हैं कि पहले बच्चों के थैलों में कामिक्स की किताबें दिख जाती थी। लेकिन अब नहीं। अब तो बैग में कभी-कभी कंप्यूटर सीडी जरूर दिख जाता है। प्रमोद कुमार बताते है कामिक्स से दूर हुए बच्चों को बहुत कुछ का नुकसान हुआ। अब बच्चे कामिक्स की बातें भी नही करते हैं।

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