अररिया : पीरगंज घाट पर इस बार क्या होगा? घाट के नजदीक पूरब तट बसे दर्जनों घरों को अपने पेट में समा लेने के बाद बकरा नदी निरंतर खतरे की घंटी बजा रही है। पर इसकी आवाज शायद प्रशासन को नहीं सुनाई दे रही। नदी द्वारा एक बार फिर मार्ग परिवर्तन की कवायद जारी है।
रास्ता बदलने में बकरा जैसी कुख्यात नदी पर कोई पुल बने और उसके अपस्ट्रीम में स्पर बांध नहीं बनाये जायें, ऐसा शायद किसी ने नहीं सुना होगा। लेकिन जिले के पीरगंज घाट पर ऐसा ही है। नदी पर लगभग चार सौ मीटर लंबा पुल बना है, लेकिन अपस्ट्रीम में दोनों तरफ कोई स्पर बांध नहीं है। लिहाजा विगत तीन साल से नदी रास्ता बदलने की कवायद में लगी है। अगर नदी ने नये रास्ते को अपना लिया तो सिकटी, कुर्साकाटा, अररिया व जोकीहाट प्रखंडों में कोसी जैसी तबाही की दास्तान लिखी जा सकती है।
जिस साल कोसी की आपदा आयी थी, उसी साल सेटेलाइट की तस्वीरों से पता चला था कि बकरा का अधिकांश पानी पीरगंज घाट के पूरब से पास कर रहा है। नदी की तेज धार ने पुल के पूरब में सड़क को काट कर नया रास्ता बना भी लिया था। यह सिलसिला तबसे जारी है। नदी धीरे धीरे पुराने रास्ते को छोड़ रही है।
जानकारों की मानें तो नदी के डाउन स्ट्रीम में भरपूर गाद व सिल्ट भर गयी है और नदी का बहाव साफ तौर पर बाधित व कुंठित नजर आता है। पिछली बारिश में नदी ने दक्षिण-पूरब की दिशा में कटान व पानी का प्रवाह शुरू किया तो प्रशासन के हाथ पांव फूल गये थे। आनन फानन में बोल्डर पीचिंग व कटाव निरोधी उपाय प्रारंभ किये गये। लेकिन पानी उतरने के साथ ही सारे उपाय शिथिल पड़ गये।
जिला प्रशासन की ओर से नदी को मूल धारा में बनाये रखने के लिए चिरान का विकल्प चुना गया। लेकिन मामले के राजनीतिकरण, भूधारियों के विरोध तथा मुआवजे की मांग के कारण चिरान कार्य नहीं हो पाया।
इस साल नदी ने पीरगंज पुल के पूरब में तट पर दवाब बनाना शुरू कर दिया है, आगे क्या होगा भगवान जाने।
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