जोकीहाट (अररिया) : मैयतों के लिए कब्र पड़ी छोटी .., यह शब्द केसर्रा पंचायत के एकमात्र कब्रिस्तान पर सटीक बैठता है जिसमें किशनगंज व अररिया जिले के सीमावर्ती लगभग एक दर्जन से अधिक गांव के मैयतों का दफन यहां होता है। लेकिन कनकई की बुरी नजरें शायद मरने वालों के लिए भीे जगह नही देना चाहती है। कनकई की काली साया में 6 एकड़ कब्रिस्तान अब डेढ़-पौने दो एकड़ में सिमट गया है जो कनकई नदी के कटान से प्रतिवर्ष सिमटता जा रहा है। केसर्रा कब्रिस्तान इसलिए भी अति महत्वपूर्ण रहा है क्योंकि अररिया- किशनगंज जिले के लगभग डेढ़ दर्जन गांवों के जनाजों के कफन-दफन के लिए यही एकमात्र कब्रिस्तान है। अररिया जिले के अंतर्गत केसर्रा परती टोला, डकैता, चौन टोला, आमबाड़ी, कोवाटोली, बलिया टोली, डेंगाबाड़ी, मजकुरी, रिक्खी टोला के अलावे किशनगंज जिले के कदमगाछी, काशीबाड़ी, बलिया एवं मजकुरी गांवों के जनाजों का कफन-दफन यहां होता है। ग्रामीणों में हैदर आजम, जुबेर आलम, मुखिया मतीउर्रहमान, मौलवी मोकीम, जकी अनवर, अधिवक्ता सईद अनवर, डा. अनीश, मौलवी सैफुल आदि ने बताया कि बिहार सरकार कब्रिस्तान की घेराबंदी के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर रही है लेकिन 20-25 हजार की आबादी से अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्र में स्थित एकमात्र कब्रिस्तान कीे घेराबंदी तो क्या कनकई के कटान से भी निजात नही मिली है। ग्रामीणों का कहना है कि अगर कनकई नदी के किनारे गाइड बांध बनाकर बोल्डर लगा दिया जाय तो कटान रूक जायेगा। केसर्रा के पूर्व मुखिया रिजवान आलम ने कहा कि कई बार प्रशासन को इस सिलसिले में लिखित सूचना भी दी गई लेकिन कब्रिस्तान को बचाने के लिए कोई उपाय नही किये गये। खासकर बाढ़ व बरसात के दिनों में जनाजे को दफनाने में ग्रामीणों को बड़ी कठिनाई होती है। ग्रामीणों ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का ध्यान इस ओर आकृष्ट कराते हुए कब्रिस्तान को बचाने की मांग की है।
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