Saturday, February 25, 2012

खसरे को आज भी लोग मान रहे दैवी प्रकोप


भरगामा (अररिया) : भले हीं हम ईक्कीसवीं सदी को लांघ रहे हों लेकिन भरगामा प्रखंड क्षेत्र के ग्रामीण इलाके में आज भी अंधविश्वास की जड़ें गहरी हैं। खसरा बीमारी को आज भी यहां लोग दैवी प्रकोप मानते हैं तथा उसका इलाज कराने के बजाय झाड़ फूंक कराने पर भरोसा रखते हैं। ऐसा नहीं है कि केवल अनपढ़, मजदूर वर्ग के लोगों में यह भ्रांति है बल्कि शिक्षित लोग भी इसके शिकार हैं।
आम लोगों में भ्रांति-
प्रखंड क्षेत्र की बड़ी आबादी आज भी खसरे को दैवी प्रकोप मान रहे हैं। इस रोग वाले घरों में काफी नेमटेम किया जाता है बल्कि इसके लिए दवा भी नहीं खायी जाती है। प्रभावित परिवार जहां तांत्रिकों के चक्कर में पड़कर झाड़-फूंक आदि करवाते हैं वहीं देवी-देवता को खुश करने के लिए पूजा पाठ आदि भी करवाने में लग जाते हैं। लोगों का मानना है कि जब देवी रूष्ट होती है तभी यह रोग प्रवेश करता है।
चिकित्सक की नजर में-चिकित्सा प्रभारी डा. सुखी राउत बताते हैं कि यह एक संक्रामक रोग है, जो मौसम परिवर्तन के साथ प्रारंभ होता है। इसके प्राथमिक लक्षण सर्दी, आंख-नाक से पानी आना, हल्का-फुल्का बुखार, छींक के साथ आंख से कीचड़ आदि आना है। चिकित्सा प्रभारी डा. राउत बताते हैं कि इससे घबराने की जगह जरूरी है कि घर के साथ आस-पास के वातावरण को साफ रखा जाय तथा पीड़ित को चिकित्सकों की देखभाल में रखी जाय। उन्होंनें दैवी प्रकोप आदि से जुड़ी बातों को दकियानुसी बातें कह पीड़ितों को पर्याप्त इलाज करवाने की सलाह दी है।

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