Wednesday, March 14, 2012

पाईप लाईन पुराना, नगर वासी शुद्ध पेयजल से वंचित


फारबिसगंज (अररिया) : फारबिसगंज के लोगों को शुद्ध पेयजल का सपना साकार नहीं हो पा रहा है। पीएचईडी द्वारा स्थापित एक लाख गैलन क्षमता वाले जलमीनार का लाभ अब आम लोगों को नहीं मिल पा रहा है। जनसंख्या के हिसाब से यह क्षमता भी काफी कम है। साथ ही यहां का नल सिस्टम काफी पुराना है जिससे शुद्ध जल लोगों तक नहीं पहुंच पा रहा है। नगरवासी आयरन युक्त पानी का सेवन करने को विवश हैं तथा धीरे धीरे रोगों के चंगुल में फंसते जा रहे हैं। नगर के लगभग इलाके में लोग आयरन वाले पानी का इस्तेमाल करने को विवश हैं। सरकार एवं विभाग द्वारा लोगों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध करवाने का अश्वासन फिसड्डी साबित हो रहा है। करीब सत्तर के दशक में स्थापित जलमीनार पानी का इस्तेमाल बस घर व वाहनों की सफाई तक ही सीमित रह गया है। अशुद्धता के कारण आम लोग उक्त पानी का इस्तेमाल पेय जल के रूप में नहीं कर पा रहे हैं। नगर के प्राय: इलाकों में वर्षो पूर्व लगे पाइप लाइन ध्वस्त हो चुके हैं। जंग के हवाले होने वाले पाइप लाइन से निकलने वाला जल कितना शुद्ध हो सकता है इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। यहां के लगभग पाइप लाइन खराब हो चुके हैं, वहीं नगर के विभिन्न स्थानों पर लगाये गये नल भी वर्षों से बेकार पड़े हुए हैं। रोजना 30 एच पीके मोटर से 1 लाख गैलन शुद्ध जल का उत्पादन करने वाले जलमीनार से एक दिन में प्रति व्यक्ति 40 लीटर जल उपलब्ध करवाने की बात विभागीय अधिकारी करते हैं। जबकि फारबिसगंज नगर की जनसंख्या लगभग 50 हजार है। इसके लिए यहां दो लाख गैलन जल की प्रतिदिन आवश्यकता है। लेकिन यहां पर स्थापित जलमीनार की क्षमता अब तक नहीं बढ़ाई गयी।
क्या कहते हैं नगर वासी:- मनोज ठाकुर का कहना है कि उन्हें मजबूरी वश लौहयुक्त जल का इस्तेमाल करना पड़ता है। पीएचईडी के जलमीनार का लाभ नगर वासियों को नहीं मिल पा रहा है। दिवाकर चौरसिया कहते हैं जलमीनार की पाइप लाइन वर्षो पूर्व बिछी थी किंतु देख रेख के अभाव में बेकार पड़ी हुई है, इससे निकलने वाला पानी पीने लायक नहीं है। गोपाल राय कहते हैं कि उनके वार्ड में दो दशक पूर्व तक पीएचईडी का नल लगा हुआ था किंतु अब उपलब्ध नहीं है। वे टयूबेल के पानी का ही प्रयोग अधिक करते हैं। गुड्डू कुमार का कहना है कि नगर में विभिन्न स्थानों पर चापाकल तो लगा दिखता है किंतु नल काफी कम नजर आते हैं। जबकि सार्वजनिक स्थलों पर नल का होना आवश्यक है। प्रताप नारायण मंडल कहते हैं कि आयरन युक्त जल के कारण जहां घर के समान यथा, कपड़ा, बर्तन आदि भी खराब हो जाते हैं, तो लोग का स्वास्थ्य कहां से ठीक रहेगा।
क्या कहते हैं अधिकारी:- पीएचईडी के एसडीओ अमित कुमार कहते हैं यहां पर स्थापित जलमीनार 1960-65 के माडल पर अधारित है, जिसकी रोजाना क्षमता एक लाख गैलन तक है। कहते हैं कि फारबिसगंज क्षेत्र में आयरन की मात्रा जल में अधिक पाई जाती है। अन्य कोई और हानिकारक पदार्थ जल में नही होने की विभागीय जानकारी है। उन्होंने बताया कि 1 पीपीएम पर लीटर की आयरन मात्रा हानिकारक नहीं है किंतु इससे अधिक हानिकारक हो सकता है। फारबिसगंज के इलाके में इसकी मात्रा 1.1 पीपीएम तक है, जबकि कई इलाकों में इससे अधिक मात्रा भी हो सकती है। उन्होंने बताया कि जल मीनार का लाभ उपभोक्ता उठा रहे हैं।
क्या कहते हैं चिकित्सक- डा. अजय कुमार का कहना है कि आयरन युक्त पानी के इस्तेमाल से पेट की कई बिमारियां होती है, वहीं हृदय रोग, खून की नली का जाम होने जैसी समस्या से लोग ग्रसित हो जाते हैं। खून की नली खराब होने की भी संभावना प्रबल हो जाती है। कहा कि आयरन युक्त पानी को अशुद्ध पानी के श्रेणी में रखा गया है। कहा कि खासकर सीमावर्ती क्षेत्र के लोगों में पेट बीमारी की समस्या अधिक देखने को मिल रही है।

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