अररिया : सूबे की तस्वीर बदलने का माद्दा रखने वाला महत्वपूर्ण मनरेगा यहां कुतंत्र के मकड़जाल में उलझ कर रह गया है। भ्रष्टाचार की बात छोड़ भी दें तो संचालन तंत्र की जटिलता, गिरोह संस्कृति और उपेक्षा के कारण मनरेगा ने अररिया में आम लोगों की आशाओं पर कुठाराघात ही किया है। न तो मजदूरों को ठीक ढंग से काम मिल पाया न भुगतान, रही सही साख की धज्जियां बिचौलिया-अधिकारी गठजोड़ ने उड़ा कर रख दी। यहां महीनों कामगारों को मजदूरी का भुगतान नहीं हो पा रहा है। एक निजी आंकड़े के मुताबिक मनरेगा मजदूरों का 40 लाख से अधिक बकाया जिला प्रशासन के पास है। आखिर कैसे जलेगा मजदूरों के घर का चुल्हा? सरकार ने भी पिछले वर्ष की तुलना में इस वित्तीय वर्ष में आवंटन भी आधा कर दिया है। पूछे जाने पर उप विकास आयुक्त प्रभात कुमार ने बताया कि मजदूरी की राशि संबंधित प्रखंडों को आवंटित कर दी गई है। लेकिन शिकायत मिलने के बाद जिला पदाधिकारी ने जांच का आदेश दिया है। जांच के बाद मजदूरों को भुगतान कर दिया जाएगा।
जिले में मनरेगा से आशा के अनुरूप न तो गांवों में विकास हुआ और न ही रोजगार के अवसर बढ़े। फलत: मजदूरों का पलायन जारी है। सीमांचल के जोगबनी, फारबिसगंज, अररिया व पूर्णिया रेलवे स्टेशनों पर दूसरे प्रांतों को जाने वाली रेल गाड़ियों में रोजना चढ़ने आ रहे मजदूरों का रैला इस बात का प्रमाण है। जब केंद्र सरकार ने मनरेगा लांच किया था तो यहां के लोगों की आंखों में सुनहरे सपने तैर रहे थे। लेकिन जटिलता एवं भ्रष्टाचार के कारण इस योजना ने यहां आम लोगों को निराश ही किया है। योजनाओं की स्वीकृति से लेकर मजदूरों को भुगतान तक की प्रक्रिया इतनी जटिल है कि आम आदमी तक समय पर इसका लाभ नहीं पहुंच पाता है।
प्रशासन के आंकड़ों पर ही गौर करें तो जिले में कुल चार लाख 11 हजार 584 जाब कार्डधारी मजदूर हैं। लेकिन फरवरी तक करीब 55 हजार को ही काम मिल पाया। इतना ही नहीं जिन्हें काम दिया भी गया तो उन्हें महीनों बाद भी भुगतान नहीं किया जा सका है।
अररिया प्रखंड के चातर पंचायत में करीब 12 लाख की राशि से चार योजनाओं का काम फरवरी में ही पूरा कर लिया गया है लेकिन जनवरी से मार्च तक मजदूरों को मजदूरी का भुगतान नहीं हो पाया। उसी तरह रानीगंज के खरहट पंचायत में भी उक्त योजना के तहत करीब 15 लाख की राशि का भुगतान मजदूरों को महीनों बाद भी नहीं मिल पाया है। उसी तरह जमुआ, बनगामा, रामपुर, कोदरकट्टी, आमगाछी, किश्मत खबासपुर, शरणपुर, मजरख, भिड़भिड़ी, बरदाहा हलहलिया, बागनगर, चिल्हनियां आदि पंचायतों में भी लाखों का काम इस योजना के तहत किया जा चुका है लेकिन मजदूरों को भुगतान नहीं मिल पाया है। कुछ पंचायत तो ऐसे हैं जहां मजदूरी का भुगतान नही होने के बावजूद मजदूर अब तक काम कर रहे हैं। एक आंकड़े के मुताबिक जिले में मजदूरों का 40 लाख की मजदूरी का भुगतान बाकी है। सवाल है भूखे पेट मजदूर कब तक कर पायेंगे काम। यही वजह है कि मनरेगा से मजदूर तौबा करने लगे हैं और काम के दूसरे विकल्प की तलाश में बाहर निकल रहे हैं। जिले में मनरेगा की बदतर स्थिति के कारण ही सरकार ने चालू वित्तीय वर्ष में इसका आवंटन आधा कर दिया है। वित्तीय वर्ष 10-11 में जहां मनरेगा के तहत जिले को करीब 52 करोड़ रुपये आवंटन मिला था। वहीं चालू वित्तीय वर्ष 11-12 में मात्र 24.42 करोड़ ही मिला है।
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