जोकीहाट (अररिया) : राष्ट्र व समाज के सांस्कृतिक विरासत को कला व चित्रकारी के माघ्यम से अक्ष़ुण्ण बनाए रखने वाले क्षेत्र के कई कलाकारों की जिंदगी आज खुद बदरंग हो गई है। संरक्षण के अभाव में क्षेत्र के कई चित्रकार केनवास व ब्रस छोड़ पेट पालने के लिए दूसरा काम अपनाने को विवश हैं। अपने ही देश में कभी चित्रकार, साहित्यकार, जैसे कलाकार व विद्वानों को राज दरबार की शोभा समझा जाता था तथा उन्हें सम्मान के साथ-साथ भरपूर संरक्षण दिया जाता था लेकिन आज वे उपेक्षित हो गये हैं।
प्रखंड क्षेत्र के कई चित्रकार कला की कद्र नहीं होते देख अन्य रोजगार तलाशने को मजबूर हैं। काकन गांव के चित्रकार खालिद शबा चित्रकारी छोड़ कप्यूटर का माउस थाम लिया है। खालिद की पेंटिंग कई बार जिला व राज्य स्तर पर चर्चा बटोर चुकी है। लेकिन आज वे अपना पुश्तैनी काम छोड़ने को लाचार हो गये। ऐसे ही दूसरे कलाकार हैं जोकीहाट बाजार निवासी विद्यानंद पोद्दार। मिथिला पेन्टिंग, पशु पक्षियों व पर्यावरण से जुड़े विषय पर उनकी चित्रकारी हमेशा चर्चा में रही है। लेकिन आज वे भी चित्रकारी छोड़ने को विवश हैं। श्री पोद्यार बताते हैं कि इस ध्ाधे में दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करना भी मुश्किल है। फिर इस तकनीकी दौर में चित्रकारों को कौन देखने वाला है। इसी तरह पलासी प्रखंड अन्तर्गत सोहन्दर हाट के मूर्तिकार सह चित्रकार सुरेन्द्र यादव, लक्ष्मी मंडल कप्यूटर की दुकानें खोल ली है। बुद्धिजीवियों का मानना है कि अगर कलाकार इसी तरह विमुख होते रहे तो सामाजिक संवेदनाओं और संस्कृति को सहेज कर रखना हमारे लिए आसान नहीं होगा। जबकि कला साहित्य से जुड़े लोगों का कहना है कि ऐसे कलाकारों क ो सरकारी संरक्षण मिलना चाहिए । ऐसा नहीं हुआ तो सामाजिक क्रियाकलापों का संरक्षण मुश्किल होगा।
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