Monday, July 18, 2011

बरकत व छुटकारे की रात है शब-ए-बरात

अररिया : शाबानुल मुअज्जम की पंद्रहवी रात जिसे शब-ए-बरात कहते हैं,बड़ी ही फजीलत, नेमअत और बुजुर्गी वाली रात है। माहे शाबान आते ही नफसे मोमीन में शौके इबादत की लहर दौड़ जाती है। इस रात लोग अल्लाह की इबादत में मस्त हो जाते हैं। रग रग में खुशी और मुसर्रत फैल जाती है। कहा जाता है माहे रमजान के आने की दस्तक देता है माहे शाबान। अभी से ही लोग रमजान की तैयारी में जुट जाते हैं। शब-ए-बारात के सिलसिले में तंजीमे फलाहे मिल्लत के सदर मौलाना कबीरउद्दीन फारान फरमाते हैं कि हरारते इमानी दिवानगीए इबादत के मिले जुले असरात का अमली मजहर पंद्रहवी शब अर्थात शब-ए-बारात में देखने को मिलता है। इस शब को शब-ए-बारात यानी बरकत और छुटकारे की रात कहा जाता है। इस रात गुनाहगारों की बखशीश फरमाता है। आजाद एकेडमी मस्जिद के इमाम कारी नियाज अहमद कासमी कहते है कि सुबह से लेकर रात तक अल्लाह एलान फरमाता है कि कोई बखशीश चाहने वाला उसकी गुनाहों को बख्श दूंगा है कोई रोजी का तलबगार उसे रिज्क दूंगा। मौलान इजहार कासमी फरमाते हैं कि इस रात को हर हिकमत वाले मामलात का फैसला होता है। दारूल उलूम रहमानी जीरोमाइल के मौलाना इनामुल बारी ने कहा कि कौन लोग इस वर्ष पैदा होंगे, कौन लोग मरेंगे, किसकी कितनी रिज्क होगी इसका फैसला इस रात में होता है। जमाअते इसलामी हिंद के मो. नसीम जमाल नकी और इमारते सरिया के काजी नजीर अहमद कहते हैं इस मौके पर दिन में रोजा और रात में खूब इबादत करनी चाहिए। इस रात खुराफाती वाली बातों से परहेज करें। कब्रिस्तान पर इसलिए जरूर जायें ताकि तुम्हें तुम्हारी मौत याद आये। इस मौके पर गरीबों, यतीमों व बेसहारों की मदद करनी चाहिए।

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