Tuesday, February 21, 2012

कचरा निस्तारण: विरोध में उठी थी आवाज


अररिया: कचरा निस्तारण को भूमि की खरीद के मामले में नगर परिषद के एक पार्षद ने विरोध किया था। अगर उस समय इस विरोधी स्वर को गंभीरता के साथ सुना गया होता तो आज खरीदी हुई जमीन लौटाने की नौबत नहीं आती।
लोग कहते हैं कि किसी भी कार्य के निष्पादन में कोई न कोई अड़चन जरूर आती है। लेकिन अड़चन को आम सहमति से हल भी हल कर लिया जाता है। जैसा कि शहर में कचरा निस्तारण के लिये क्रय की भूमि में भी आवाजें उठी थी, लेकिन उस आवाज पर नगर परिषद के बोर्ड में न तो आम सहमति बनी और न ही उठाये गये आवाज पर नप प्रशासन ने गंभीरता दिखाई। नप प्रशासन यदि उस समय गंभीर होता तो शायद क्रय की जमीन को वापस कराने की नौबत नही आती।
बुआरीबाध स्थित 16 लाख की जमीन को 57 लाख में खरीदने के मुद्दे पर वार्ड पार्षद गौतम साह ने प्रमंडलीय आयुक्त को आवेदन भेजकर आरोप लगाया था कि नप प्रशासन ने नियमों को ताक पर रख कर जमीन का क्रय किया है। पार्षद ने आरोप लगाया था कि उक्त जमीन के क्रय में 40 लाख रूपये की हेराफेरी की गयी है। उन्होंने चेतावनी दी थी कि यदि इस प्रकरण की जांच नही हुई तो वे भूख हड़ताल पर बैठ जायेंगे। लेकिन कुछ दिन बाद ही मामला ठंडा पड़ गया।
अब दो वर्ष बाद अचानक यह मामला गरमाने के बाद कई अनसुलझे पहलु फिर सामने आने लगे हैं।
जिला पदाधिकारी के निर्देश पर भले हीं जमीन मालिक ने नप प्रशासन को राशि वापस कर दी है, लेकिन इसके पीछे जमकर हुई अनियमितता के दोषी कौन हैं? इस सवाल का जबाव आज लोग ढूंढ़ रहे है।
इधर जमीन क्रय के पीछे चौतरफा नियमों की धज्जिया उड़ाने की बातें सामने आयी है। सबसे पहले तो बारहवीं वित्त आयोग की राशि से जमीन क्रय नहीं किया जाना था। जमीन को एक हीं टुकड़ा में खरीदना में था, वह भी नहीं किया गया। इस मामले का रोचक पहलू तो यह है कि कोसी प्रोजेक्ट की 18 डिसमिल जमीन भी निबंधित करा ली गयी। इसके अलावा जमीन भी कम पायी गयी। नगर परिषद को 1 एकड़ 91 डिसमिल जमीन की रजिस्ट्री की गयी, जबकि उक्त जमीन 1 एकड़ 73 डिसमिल हीं पायी गयी।

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