अररिया: भारतीय क्षेत्र से मवेशी की तस्करी कर उन्हें बांग्लादेश और नेपाल ले जाया जाता है जहां उनके मांस की आधुनिक मशीनों से पैकेजिंग कर मध्य पूर्व के देश और चीन को एक्सपोर्ट किया जाता है। एसएसबी 24 वीं बटालियन के सेनानायक एकेसी सिंह ने भी इस बात की पुष्टि की है। उन्होंने सरकार को भेजी गयी रिपोर्ट में पशु तस्करी व उनके विदेशी बूचड़खानों में हो रहे इस्तेमाल के बारे में खुलासा किया है।
इधर, जिले में लगने वाले मवेशी हाट पशु तस्करी के बड़े केंद्र बन कर उभर रहे हैं। तस्करी के जरिये आने वाली मवेशियों को इन हाटों में फर्जी बिक्रीनामा तैयार कर वैध बना दिया जाता है। ताकि पुलिस व अन्य एजेंसियां उनकी पकड़ धकड़ न कर सकें।
जानकारों के मुताबिक भारतीय क्षेत्र से होने वाली पशु तस्करी के फाइनल ठिकाने बांग्लादेश व नेपाल में कार्यरत बूचड़खाने हैं। जहां आधुनिक मशीनों से स्कीनिंग के बाद उनके मांस की पैकेजिंग होती है और उन्हें मध्यपूर्व व चीन आदि देशों के लिए एक्सपोर्ट कर दिया जाता है।
इस काले धंधे में पूरा कारोबार फर्जी कागजी प्रक्रिया की आड़ में चलता है। सूत्रों की मानें तो अररिया जिले में पश्चिम से आने वाले कच्चे पक्के रास्ते मवेशी तस्करों के जाने पहचाने रूट हैं। वे जिले की पश्चिमी सीमा से इन करते हैं तथा निकट के हाट में अपने मवेशी खड़े कर देते हैं। वहां उनकी फर्जी बिक्री व खरीद होती है तथा ताजा बिक्रीनामा बना कर आगे की यात्रा पर रवाना कर दिया जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है कि मार्ग में कोई रोकटोक करे तो उन्हें कागज दिखा दिया जाय। इस तरह इन मवेशियों की यात्रा बंगाल के बांग्लादेश सीमावर्ती गांवों तक होती है।
इन गावों में मवेशियों को भूमिगत कमरों में रखा जाता है। इन कमरों को सूखा ढट्ठा कहते हैं। बंगाल के करणदिघी, इस्लामपुर, चोपड़ा, दूधकुवंर, कुकराधा, ग्वालपोखर, सोनापुर, बोधगांव सहित अन्य सीमावर्ती गांवों में ऐसे कई सूखे ढट्ठे कार्यरत बताये जाते हैं। एक बार इन ठिकानों पर मवेशी पहुंच जाने के बाद उन्हें मौका ताड़ कर अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर बहने वाली नागर नदी के पार कर दिया जाता है, जहां से बांग्लादेश की जमीन शुरू हो जाती है। भारतीय क्षेत्र में इन पशु तस्करों को पुलिस व अन्य सरकारी एजेंसियों से बचाने के लिए कई सफेदपोश उन्हें संरक्षण देते हैं।
कमांडेंट श्री सिंह ने बताया कि विगत कुछ समय में 15 लाख रुपयों से अधिक कीमत की मवेशियां जब्त की गयी हैं। पहले इन्हें बांग्लादेश की ओर ले जाया जाता था, अब सीमावर्ती इलाकों से इन्हें सीधे नेपाल टपाने की कोशिश की जाती है।
जानकारों की मानें तो केवल अररिया जिले में तकरीबन सौ सरकारी मवेशी हाट हैं। इनमें से 45 सरकारी हैं। इनमें चंद्रदेई, धर्मगंज, कुआड़ी, कुर्साकाटा, रघुनाथपुर, मटियारी आदि प्रमुख हैं। इन हाटों से प्रशासन को राजस्व मिलता है, लेकिन उनकी भूमिका केवल राजस्व वसूली तक ही सिमटी नजर आती है। क्योंकि प्रशासन द्वारा पशु तस्करों पर नकेल कसने की दिशा में कोई ठोस पहल अब तक नहीं हुई है।
इधर, इस संबंध में जानकारों का मानना है कि किसी मवेशी को पकड़ने के लिए कानूनी प्रावधानों का अभाव है। केवल केटल ट्रेसपास एक्ट है, उसमें भी शिकायत होने के बाद ही कार्रवाई की जा सकती है।
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