फारबिसगंज(अररिया) : शनिवार की शाम श्री रानी सरस्वती विद्या मंदिर व गंगा सरस्वती शिशु मंदिर के वार्षिकोत्सव कार्यक्रम के दौरान परिसर में खचाखच भरे दर्शकों को संबोधित करते हुए एसपी शिवदीप लांडे ने अपने बचपन की यादों को ताजा करते हुए कहा कि महाराष्ट्र में वे अपने घर से चार किमी पैदल चलकर पारस स्थित विद्यालय में पढ़ने जाता था। बताया कि उनके माता पिता किसान हैं और आज भी खेतों में जाते हैं। उन्होंने विद्यालय परिवार का शुक्रिया अदा करते हुए बताया कि यहां आमंत्रण देकर विद्यालय परिवार ने उनकी यादों को ताजा कर दिया है। क्योंकि यह संयोग है कि उनके विद्यालय का नाम भी सरस्वती विद्यालय पारस ही था। कहा कि मैं जो भी हूं वह उस सरस्वती विद्यालय की देन है। उन्होंने देश भर में व्याप्त सरस्वती विद्या मंदिरों की सराहना करते हुए कहा कि यहां शिक्षा के साथ खेल एवं संस्कृति के पाठ भी पढ़ाये जाते हैं। यहां की शिक्षा व्यवस्था बच्चों में अनुशासन लाता है। बताया कि आज मैं जिस यूनिफार्म में हूं उसकी पृष्ठभूमि भी अनुशासन ही है। श्री लांडे ने यह भी हिदायत दी कि अनुशासन का मतलब बच्चों के बचपन पर शासन नहीं होना चाहिए। बल्कि उनके अंदर की प्रतिभा को विकसित करने की स्वतंत्रता अभिभावक और शिक्षकों को देनी चाहिए। तभी तो साहित्यिक, कवि और समीक्षक रमेश तेंदुलकर का पुत्र सचिन साहित्यकार नहीं, महान क्रिकेटर बन गया। इस संदर्भ में पुलिस कप्तान लांडे ने कहा कि उनके माता पिता ने भी कभी उन पर दबाव नहीं डाला। यहां तक कि जब उन्होंने इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की तो उनके माता पिता को यह भी नहीं पता था कि किस ब्रांच में उन्होंने इंजीनियरिंग की है। उन्होंने कहा कि अपने लक्ष्य को खुद निर्धारित करने की स्वाधीनता के कारण ही पहले उन्होंने लेक्चरर का पद और फिर रेवेन्यू सर्विस का अच्छा ओहदा छोड़कर आईपीएस के बिहार कैडर में आने का मन बनाया। और अब मैं पूरी तरह बिहारी हूं। श्री लांडे ने कहा कि किसी ने मुझसे बताया कि लोग कहते हैं कि आप जिला में एक नदी के प्रवाह की तरह छा गये हैं। श्री लांडे ने कहा कि नदी के प्रवाह में तो मुर्दे बहते हैं, मैं तो यकीन करता हूं कि जो जिंदा है उन्हें प्रवाह के विरूद्ध खड़ा होना चाहिए। उन्होंने बच्चों को चरित्रवान बनने का आह्वान करते हुए कहा कि मैं खुद बहुत कुछ तो वादा नहीं करता लेकिन मुझ में इतना तो चरित्र है कि चाहे वह कितना भी रसूख वाला अमीर या फिर बड़ा अपराधी ही क्यों न हो मुझसे आंख मिलाकर बात करने की हिम्मत नहीं है। उन्होंने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि वे जो भी बोलते हैं वह सीधा और सच बोलते हैं। इसलिए जिन्हें उनकी बातें पसंद हो वे अमल करें या फिर न करें, लेकिन उनकी नजर में यही यथार्थ है। उल्लेखनीय है कि बड़ी संख्या में उपस्थित दर्शकों ने श्री लांडे के हर शब्द को एकाग्र होकर सुना और कार्यक्रम के पश्चात भी देर तक उनके संबोधन पर चर्चा करते रहे।
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