Monday, December 20, 2010

भ्रष्टाचारियों की सैरगाह रहा है अररिया

अररिया (Araria) : अररिया जैसा अविकसित व पिछड़ा जिला भ्रष्टाचार के शातिर खिलाड़ियों के लिये माकूल व खुली ऐशगाह रहा है। इन खिलाड़ियों में हर तबके के लोग शामिल हैं। लेकिन राजनीतिक नेताओं व अधिकारियों की संख्या अधिक।
अररिया को भ्रष्टाचार की भट्ठी में झोंक कर करोड़ों कमाने वाले इन शातिर लोगों ने यहां खूब गुलछर्रे उड़ाये। डेहटी पैक्स घोटाला, इंदिरा आवास घोटाला, नरेगा मनरेगा में गड़बड़ी .., लूट की एक नहीं अनेक दास्तान। लेकिन विगत चार पांच वर्षो में मीडिया व कुछ प्रबुद्ध जनों के प्रयास से जनता के पैसों की लूट पर अंकुश लगाने के दिशा में सार्थक प्रयास हुए हैं।
जानकारों की मानें तो विगत सात आठ वर्ष से केंद्र व राज्य सरकार की विभिन्न योजनाओं के तहत आने वाले धन को बड़े पैमाने पर लुटेरे व कथित रूप से घोटालेबाज अधिकारी हड़प कर डालते थे।
इसी क्रम में इंदिरा आवास, एमडीएम, बाल विकास परियोजना, स्कूल भवन निर्माण सहित कई अन्य योजनाओं का पैसा डेहटी पैक्स नामक एक सामान्य सी सहकारी संस्था में रख दिया गया। फिर वहां से इस पैसे को विभिन्न व्यक्तियों को ऋण के रूप में दे दिया गया।
लेकिन विगत एक साल में जिलाधिकारी एम सरवणन ने घोटालेबाजों की नकेल कसने में एक हद तक सफलता पायी है।
जानकारी के मुताबिक सरवणन ने जब डेहटी पैक्स से जुड़ी फाइलों को खंगालना शुरू किया तो कई महत्वपूर्ण संचिकाएं गायब पायी गयी। इसके बाद उन्होंने डीआरडीए के चार कर्मियों को निलंबित किया तथा तत्कालीन डीडीसी के विरुद्ध प्रपत्र क गठित करने के आदेश दिये। यह माना जाता है कि डेहटी पैक्स के माध्यम से लगभग सत्तर करोड़ रुपयों का गोलमाल हुआ है। अगर इसकी सघन जांच हो तो कई सफेदपोश राजनीतिक व्यक्ति भी इसकी चपेट में आ जायेंगे।
इंदिरा आवास योजना में गड़बड़ी को ले दैनिक जागरण द्वारा निरंतर खबर प्रकाशन के बाद जिलाधिकारी श्री सरवणन ने सन 2006 के बाद लाभुकों को आवंटित आवासों को ले जांच करवायी। इस जांच से हड़कंप मच गया। कई मुखिये जेल गये तो कईयों ने अग्रिम जमानत ले ली। इंदिरा आवास में गड़बड़ी की कथा अनंत है, इसे रोकना शायद..। वर्ष 2004 में तत्कालीन डीडीसी द्वारा इंदिरा आवास निर्माण लाभुकों द्वारा नहीं, बल्कि अभियंताओं द्वारा करवाये जाने के लिये कुल आठ करोड़ की राशि विशेष प्रमंडल के नाम आवंटित कर दी गयी थी। चालू साल में इस मामले की भी कलई खुली। जांच की आंच में तत्कालीन कलेक्टर भी आ गये।
जानकारों की मानें तो मनरेगा में मुखियों ने मनमाना खेल किया है। जिले में कम ही पंचायत ऐसे हैं जहां गड़बड़ी नहीं हुई। एक तो जिले के सारे श्रमिक अब भी जाब कार्ड से वंचित हैं और जिन्हें जाब कार्ड मिला भी है उन्हें काम नहीं मिलता। मनरेगा की सोशल आडिट का जिम्मा संभालने वाले एनजीओ जन जागरण संस्थान से जुड़ी कामायनी स्वामी मानती हैं कि मनरेगा के क्रियान्वयन में ढेर सारी त्रुटियां हैं। कामायनी के मुताबिक सोशल आडिट के दौरान पंचायतों में मनरेगा व इंदिरा आवास योजना में जम कर गड़बड़ मचायी गयी है।

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