अररिया (Araria) : नेपाल की अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर बसे अररिया जिले में गरीबी सर चढ़ कर बोलती है। गरीबी उन्मूलन को ले सरकार व उसके प्रशासन तंत्र द्वारा ढेर सारी योजनाएं चलाई जा रही हैं, लेकिन सबकी सब बेनतीजा।
गरीबी हटाने के नाम पर अरबों खरबों आये, लेकिन गरीबों की गरीबी दूर नहीं हुई, हां कई नेताओं व अधिकारियों ने अपनी गरीबी जरूर दूर कर ली।
गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर करने वालों के लिये वर्ष 1993 में पहला बीपीएल सर्वेक्षण हुआ, जिसमें कुल 1.86 लाख परिवार बीपीएल पाये गये। इस बीच सरकार ने गरीबी उन्मूलन को ले करोड़ों भेजे। लेकिन पांच साल बाद जब दोबारा बीपीएल सर्वेक्षण हुआ तो गरीबों की संख्या बढ़ कर 3.01 लाख पहुंच गयी। ग्रामीण गरीबों की सही संख्या का आकलन करने के लिये तीसरा सर्वे 2002 में होना था, लेकिन इसमें कई वर्ष लग गये। वर्ष 2009 में इसके आंकड़े सामने ओ तो गरीबों की संख्या बढ़ कर 4.51 लाख के आंकड़े पर पहुंच गयी। हालांकि इस सर्वेक्षण को ले कर जनाक्रोश चरम पर रहा। दर्जनों स्थानों पर सड़क जाम, धरना प्रदर्शन आदि हुए , लेकिन प्रशासन गरीबों की वास्तविक संख्या का पता नहीं कर सका। नतीजा यह कि सचमुच के गरीब योजनाओं के लाभ से वंचित हैं और अमीर लोग मलाई उड़ा रहे हैं।
बात केवल बीपीएल सर्वेक्षण में घालमेल की ही नहीं।
चालू साल में इंदिरा आवासों के लक्ष्य व उपलब्धि पर गौर करें तो बात बिल्कुल साफ हो जाती है। इसवर्ष प्रशासन के खजाने में पैसा रहने के बावजूद पचास हजार से अधिक गरीब परिवार इंदिरा आवास से वंचित रह गये। जिन परिवारों को पैसा दिया भी गया,उनमें से दस फीसदी लोगों ने भी आवास नहीं बनाये। आखिर पैसा कहां गया?
सवाल नीयत का भी है। गरीबी दूर करने से मतलब ही किसे है? जरा व्यक्तिगत गरीबी दूर करने के लिये चल रही स्वर्ण जयंती स्वरोजगार योजना के आंकड़े देखिये तो सबकुछ साफ हो जायेगा। इस साल जिले में 362 स्वयं सहायता समूहों को वित्त पोषण किया जाना था, लेकिन प्रशासन तंत्र केवल 57 समूहों को ही लाभ दिला पाया। इस योजना के तहत डीआरडीए को 9.32 करोड़ रुपये प्राप्त हुए पर उसमें से मात्र 1.56 करोड़ ही खर्च किया जा सका। अल्पसंख्यक समुदाय के कल्याण के लिये प्रस्तावित योजनाओं का भी यही हाल है।
इस संबंध में जानकारों का मानना है कि सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में दलाली प्रथा चरम पर है। हर स्थान पर बिचौलिये सक्रिय हैं। ये योजनाओं का लाभ गरीबों तक पहुंचने ही नहीं देते। बताते हैं कि इन बिचौलियों को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है और वे ब्लाक से लेकर जिला तक के हर गलियारे में खुल कर खेलते हैं।
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